खता हया-ए-हुस्न से हुयी ऐसी भी क्या..
जो वफ़ा-ए-इश्क इस कदर रूठ गया...
हुस्न तो सदा ही बिखरा है टूट कर...
पनाह-ए-इश्क की बाहों मे, पर आज..
ज़रा सी दिल्लगी की ऐसी मिली सज़ा..
दामन-ए-हुस्न से इश्क कहीं छूट गया..
इश्क की गर्मी से तो हुस्न हमेशा पिघलता रहा..
रात दिन तमन्ना-ए-इश्क में जलता रहा...
इश्क जब भी मिला बस पल दो पल के लिये...
और हर बार रूह-ए-हुस्न को और तन्हा कर गया..
जलवा-ए-हुस्न को क्या बयां करे कोई...
काबिले तारीफ़ तो अदा-ए-इश्क है आजकल..
चाहा हुस्न को इश्क ने तड़प के इस कदर..
कि अपना दर्द वो हुस्न-ए-दिल में छोड़ गया...
कैसे शिकवा भी करे सदा-ए-हुस्न...
खामोश इश्क से उसकी बेरुखी पर...
यही तो लिहाज़ है दायरा-ए-मोह्ब्बत का..
वो तो बस दायरे का एक और वर्क मोड़ गया..
खाम्ख्वाह हुस्न को बेवफ़ाई का इल्ज़ाम ना दीजिये..
हुस्न तो आज भी जगा है इंतज़ार-ए-इश्क में..
वरना कब की बंद कर ली होती उसने पलकें अपनी..
गर खुली आंखों में वो उम्मीद-ए-इश्क ना छोड़ गया होता..
7 comments:
वाह वाह वाह..बहुत सुन्दर गजल लिखी है आपने.
वैसे ये ईश्क न होता तो ये हुस्न भी न होता...
किसी ने सच कहा है
"बन ने सवरने का तब है मजा
कोई देखने वाला आशिक तो हो
वरना ये जलबे है बुझते दिये
कोई इन पे मरने वाला आशिक तो हो
ishq ki ibdita toh badi hi talqh hai,per munasib nahi har kisi ke liye.phir hawa jiski hoti hai parvah nahi,uth gaye kadam jab aashiqi ke liye.
arzoo-e-byan se hoti hai hulchul,hausla rakho ki jawab jaroor aayega!!!
अच्छा लिखा है, पर पूरी समझ नहीं आई क्योंकि उर्दू का ज्ञान बहुत कम है।
घुघूती बासूती
Lovely!
bahut sundar likha hai aapne manya hamesha ki tarah ..
Manya,
Sorry to say this time m not impressed....
मुझे मात्र उर्दू शब्दों का ग्रंथि लगा…लगा भावनाएँ शब्दों से बाहर की ओर बह रही हैं…
very well written,
nice keep it up,
see you soon
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