Saturday, November 28, 2009

खाली - खाली दिल...


खाली - खाली दिल....
कभी - कभी...
भर आता है.. आंख में....

पलकें झपकती हैं जब...
चुभता है.. ख्वाब का ....
कोई टुकड़ा आंख में...
खिला करते होंगे फूल...
फिर बहार के आने पे...
टूट के कब... जुड़ा है...
कोई पत्ता... फिर... शाख से.....

रेत के घरौंदे... टूटे...
समंदर के.. पास में...
घर से... बे- घर...
हो गये हम...
एक अदद...
आशियाने की...आस में....

टुकड़ा - टुकड़ा....
पहले तो फ़लक टूटा....
फ़िर ज़र्रा - ज़र्रा ज़मीं....
खींची गई पांव से.....
बे - ज़मीं.... बे - आसमां.....
खाक में मिला... वजूद मेरा....
खो गया.... खुद की ही तलाश में....

मर के भी... देखो....
ज़िंदा.. रह गये हम.....
जाने... कौन सी आस...
अटकी है... सांस में.....
किस दर्द पे....
अब निकलेगा दम.....
ये चिंगारी... कब....
बदलेगी राख में......

खाली - खाली दिल...
कभी - कभी... भर आता है...
आंख में....


Saturday, August 29, 2009

खोया सा.. एक रिश्ता..


एक रिश्ता तेरा - मेरा.......
एक रिश्ता कुछ पूरा.... कुछ अधूरा......
कुछ तुम सा... कुछ मुझ सा...
एक रिश्ता... हम सा....
यादों के नर्म लिहाफ़ में लिपटा....
तेरी मेरी उंगलियों में उलझा...
कभी सुबह की करवटों में.....
कभी शाम के झुरमुटों से...
हर कोने से पुकारता... एक रिश्ता..
मेरी गोद में मुंह छिपाए....
तेरे कांधे पे सर को झुकाये....
सिसकता है रिश्ता.....
मुझ से हाथ छुड़ा तेरे पीछे....
साये सा चला है.. रिश्ता...
तुम्हें रोकता... मुझे बुलाता...
चलते - चलते रुका सा रिश्ता....
बढती दूरियों में... खोया सा...
सन्नाटे में गुम .. सदाओं सा...
ना तुममें शामिल... ना मुझमें...
अब अकेला चला है रिश्ता...
थकी - थकी सी सांसें लेता....
बंद पलकें किये... सोया है रिश्ता.....

Sunday, August 9, 2009

कहो ना...

क्या सुनाई देती है.... तुम्हें मेरी आवाज़ आज भी...
कहीं हवा में घुली- घुली सी....
जब गुजरते हो तुम... यादों के गलियारे से..
क्या मेरी परछांईयां... तुम्हें वहां आज भी मिलती है...
कहो ना... क्या आज भी शामिल है कहीं..
मेरा संग तुम्हारी राह में.....

क्या अब भी... मेरी आंखें रोकती है...
तुम्हारे बढ़ते कदम... और लौट पड़ते हो तुम....
फिर मेरी ही ओर....
सुनो तुम सच कहना.... अब भी डरते हो...
उन घनी पलकों से......

क्या अब भी सुनते हो तुम.. मेरी खामोशी...
मेरा डांटना... तुम्हारा डरना....
क्या सचमुच... एक ख्वाब था...शीशे का...
देखो ना गिरा है एक टुकड़ा...
मेरी पलकों से... चुभता है मेरे पांव में...
क्या अब भी दर्द होता है तुम्हें.... मेरे दर्द से..

क्या अनछूआ सा वो रिश्ता..
अब भी छूता है तुम्हें...
अब भी थामता है हाथ तुम्हारा... करता है जिद तुमसे..
क्या अब भी वजूद मेरा शामिल है.. तुम्हारी रूह में...

क्या लौटोगे तुम फ़िर कभी.....
लौटाने को दिन नये... रिश्ते पुराने.....
क्या कभी याद आयेंगे.... तुम्हें गुजरे ज़माने....
कहो ना..क्या अब भी मेरे ख्वाब रखे हैं.. तुम्हारे सिरहाने..

Wednesday, June 24, 2009

Dard..............


जाने कैसा दर्द है... की मुझे दर्द का एह्सास नहीं..
जले ज़ख्मों पे नमक कौन छिड़कता है...
जिस्म छिलने से मुझे कहां दर्द होता है...
मेरे रिसते जख्मों को मरहम की तलाश नहीं....


सूनी वीरान आंखें... अब बंजर हो चली हैं..
होने दो अब दर्द की बारिश....
ज़िंदा रहने को समंदर भी अब कम पड़ता है...
मुझे मीठी झील की प्यास नहीं....

मेरी समझ उसे कभी समझ ना सकी...
ना उसने मुझे समझा कभी...
हाथ में सवालों के पत्थर उठाये खड़ा है आईना...
ये अक्स मेरा है... पर इसे मेरी पहचान नहीं...


दर्द को हथेली में बंद कर जो छिपा लिया मैंने...
मेरी तकदीर की लकीरों में अब मुस्कान नहीं...

Saturday, January 3, 2009

जाने कैसे हो तुम...........


सोचती हूं तुम्हें.... की कैसे हो तुम....



अजीब सवाल है न...




जब तुम्हें महसूस करती हूं....




एक अजीब सा सुकून.....




एक अजीब सी कशिश....




दौड़ती है... मेरी रगों में.....




लगता है क्या मेरे दिल में...




बसे अहसासों जैसे हो तुम.....




जाने कैसे हो तुम........







सांवली रात... गोरी चांदनी....




झिलमिल तारे... और मदहोश हवा....




सब छूते हैं मुझे...




बातें करते हैं मुझसे....




तुम्हारी महक... तुम्हारी सदा...




मुझे समेट लेती हैं....




और जब बोझल पलकें...




नींद के आगोश में.. सोती हैं..



्सोचती हूं क्या ख्वाबों जैसे हो तुम....




जाने कैसे हो तुम............





रब की सूरत.. बंदे का सजदा...



बंद आंखों... जुड़े हाथों की....



खामोश प्रार्थना.....



इनमें बसते हो तुम....



जब भी हाथ उठा आंखें बंद की....



लगता है दुआओं जैसे हो तुम.....



जाने कैसे हो तुम..........