तुमसे मिलना.. एक अजीब-अद्भुत संयोग...
विपरीत धाराओं से मैं और तुम...
उलझ जाते हर बार जब भी मिलते...
ना तो मैं तुम्हारी सुनती.. ना तुम मुझे समझते..
दोनों बस अपनी ही रौ में बहते...
फिर धीरे-धीरे जाना तुमको मैंने और मुझको तुमने..
पर.. अभी बहुत समझना बाकी था...
रोज नये चित्र रिश्तों के बनते-बिगङते...
जाने-अनजाने हम बंधने-जुङने लगे...
एक-दुजे को सुनने-समझने लगे...
तुम्हें जानना एक अलग, पर सुखद अनुभव.....
"तुम्हारी वो मुझे ना चाहने की कोशिश...
तुम्हारी वो मुझे पा लेने की कशमकश...
तुम्हारा मुझपे स्वत्व भाव,अपनत्व और गहन आकर्षण...
तुम मोहित-मुग्ध.. सम्मोहित करते तुम्हारे चंचल स्वपन...
पर सीखा नहीं और ना ही किया तुमने दिखावा प्रेम का...
ना ही मिथ्या वचनों और दिवा-स्वप्नों पर नींव डाली प्रेम की..
तुम शुद्ध, कोमल... पर दृढ एवम कठोर भी...
अगम्य नहीं हृदय-पथ तुम्हारा.. पर नहीं सुगम भी...
खुशी का कोलाहल करती, तुम्हारी वो चंचल मृदु हंसी...
मेरी हृदय वीणा के तारों को छूती, झंकृत करती...
तुम सरल-सहज शिशु सम, तुम निर्भीक सत्य...
तुम अल्हङ, तुम चंचल, ना तुममें छल ना तुममें प्रपंच...
कहते रहे तुम सदा स्वयं को प्रस्तर...
पर तुममें बहता कहीं कल-कल वो स्नेह का निर्झर.."
'प्रेम' तुम्हें हुआ नहीं मुझसे अभी...
ये सत्य ग्यात है.. और स्वीकार्य भी...
पर जाने किस बंधन में बांध लिया तुमने...
मंत्र-मुग्ध सी खोई हूं इस अनन्य भाव में..
बहुत खुश हूं इस अनामित पर विस्तृत रिश्ते में...
एक अजनबी साथी!... तुम्हें पाकर.....
14 comments:
आपकी कविता हमेशा की तरह अच्छी है।
आपने ड़ के स्थान पर ङ का प्रयोग किया है, ड़ के लिये बाराहा कूट Dx है।
अच्छे भाव हैं हमेशा की तरह मान्या जी!! बधाई!
manya yah rachana maine tumahari ek saans mein padhi ..dil ko chu jaane chhaa jaane waale bhaav hain in mein ..sirf ek word yah amazing hai ...
wah wah bahut achchi lagi ye kavita. Ise Paricharcha
http://www.akshargram.com/paricharcha/viewforum.php?id=19
mein bhi agar aap post kar sakein to bahut achchi baat hogi.
तुम विशाल आसमान कैसे बँधोगे बँधन में
मैं बदली पानी की ,बरस पडी एक झोंके से
बहुत भावुक कृति के लिये बधाई
मैने यह कविता कई कई बार पढी, भाव इतने अच्छे है कि हर बार पढने की इच्छा हुई।
मैने शायद पहले भी आपको कहा है, कविता वो जो दिल मे उतर जाए और पाठक उस रचना से अपने आपको जुड़ा हुआ महसूस करने लगे। आपकी कविताओं मे मुझे वो ही कशिश दिखाई देती है। अब बहुत ही भावपूर्ण और सुन्दर रचना के लिए धन्यवाद स्वीकारें।
सुंदर,सहज और भावपूर्ण !!
nice one..check out my new one!!
chintan
Mishra ji धन्य्वाद आगे ध्यान रखूंगी।
समीर जी.. आप्का बहुत शुक्रिया..
रंजू .. thanx for ur gr8 words..
Manish ji... परिचर्चा में पोस्ट कर दी है.. धन्य्वाद..
पूनम जी .. बहुत शुक्रिया इतने सुंदर शब्दों के लिये...
जीतू जी.. आप हमेशा इतनी सराहना करते हैं ध्न्य्वाद.. इस बार तो आपने सच्मुच आश्चर्य्चकित कर दिया की मेरी कविता आपको इतनी अच्छी लगी की बार-बार पढ्नी पड़ी..
बेजी जी.. बहुत शुक्रिया.. हौसलाअफ़्जाई का..
Thanx Chintan.. will check for sure..
Bahut sundar kavita hai manya ji.
अनजाने को चुमने की हसरत भी कोई इतना विशाल आलंबन में समेटे है…दिशाएं उद्घोष करती है
जो मुझसे इतना रहा करीब कहीं वही तो मेरा यह अजनबी नहीं जिसे मैं सोंचती हूँ अपने तनमन में
रोमांस से परिपूर्ण यह कविता है तुम्हारी जिसे महसूस करना ज्यादा उचित जान पड़ता है…।
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