Thursday, March 1, 2007

नहीं बोलूंगी कान्हा तोसे..


नहीं बोलूंगी कान्हा तोसे मत छेङ मोहे.. जा मतकर ठिठोली...


काहे पकङे मेरी चुनरी.. काहे छीने मोरी गगरी..


जब देखो तब छेङे मुझको.. आगे-पीछे डोलत है..


कभी थामे बैंया मोरी.. कभी कलाई मोङत है..


अब दूंगी मैं तोहे गारी.. मत छेङ मोहे.. मत कर ठिठोली...



जाने कबसे रास रचाये गोपियों संग... और नी मुई बंशी बजावत है..


सांझ ढले सुधि आई मोरी.. फिर झूठी बात बनावत है..


जा अब नहीं सुनूं मैं बतियां तोरी... मत छेङ मोहे.. मत कर ठिठोली...



जब देखो तब भरमाये मुझको.. हौले से मुस्कावत है...


बस तुझको ही चाहूं.. तुझ बिन रह नहीं पाउं.. काहे मोहे जलावत है...


तेरी तो हर लीला न्यारी... मत छेङ मोहे.. मत कर ठिठोली..



ले सांवरे तोसे हार गयी मैं.. अब काहे सतावत है..


फाग का महीना है सांवरे.. अपनी प्रीत में रंग दे मोहे..


तुझ सी बन तुझ में समा जाउं.. अब दूरी नहीं सही जावत है...


तुझपे तो मैं जाऊं वारी.. चाहे तो छेङ मुझे .. चाहे कर ठिठोली..


आ खेलें हम भी प्रेम रस की होली...

10 comments:

Abhishek said...

वाह मानया जी,
आपने तो एकदम होली का माहौल बना दिया :-)

Divine India said...

मान्या जी,
होली की फुहार को जिस प्रकार के शब्दों के रंगों में
डालकर बिखेरा है… मोह गया मन मोरा सुन तेरी यह मधुर ठीठोली कही कोई और वन में रच जाये
रास लीला मेरी.।
कृष्ण या भाव और तुम; रच डाली भीगीं होली
ख़ंघाल के पावन हृदय को बस खो जाओ ऐ बावड़ी॥
बधाई स्वीकारें!!

रंजू भाटिया said...

RANG moh pe piya ka aisa chada
mera tan man piya ke rang mein ranga

bhul gayi mein apni sudbudh.....
dil mein preet ka taap hai jaga

main jogan ban ke bahatku gali gali
mujhe apne piya ki gali na mili

aaj toh kuch aisa rang dikha de
mohe apne piya se aaj mila de

ranju

ravish kumar said...

बहुत अच्छा । टीवी पर दिखने वाली फटीचर होली की तुलना में ये होरी बेहतर है । ब्लाग पर ही असली होली है । रवीश कुमार, कस्बा
naisadak.blogspot.com

Anonymous said...

होली के रंगों मे रंग मिलादिया आपने। आपको होली की शुभकामनाएं

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

ओह्....हो...पहले होली के रंग और गुलाल के संग शुभकामनायें...
अब आपकी कविता पे, खास होली की अट्खेलियां का आभास आ रहा है. कन्हैया और राधा की फाग्-मस्ती को आपने मस्ताने अंदाज मे बयां किया. होली से पहले ही होली की याद आ गयी. खास मथुरा-वृन्दावन स्टाइल मे होली की बयार लगती है.
शुक्रिया कविताओं के बदलत मिज़ाज़ के लिए.

उन्मुक्त said...

प्यार जो जीवन की सबसे प्यारी अनुभूति है।

ghughutibasuti said...

वाह, सुन्दर भाव हैं और ऐसा गीत गाने पर तो कान्हा होली खेल कर ही रहेंगे !
घुघूती बासूती

Manish Kumar said...

अच्छा लिखा है आपने !

Anonymous said...

Abhshek Ji..Divyabh .. Ranju JI.. Ravish JI.. Girindra JI...Shuaib JI... Unmukt Ji.. Baasuti Mam.. और Manish Ji.. आप सभी का बहुत धन्य्वाद की आप सबने मेरे भावों को पढा , समझा और इतनी सराहना की..

Hi Tarun, thnx for the information and invitation..