Tuesday, February 20, 2007

तू मुझको पगली सी लगती है..


जब भी मिलता हूं तुझसे..

तू अलग, अलबेली..

मुझको बिल्कुल पगली सी लगती है..


कभी उलझती.. कभी सुलझती..

कभी अनगढ, अबूझ पहेली सी..

अजनबी..पर बिल्कुल अपनी सी लगती है..


कभी हंसती है खिल-खिल कर..

कभी रो देती सीने से लगकर..

तू बारिश पहली सी लगती है...


कभी रूठती खुद ही लङकर..

फिर मान भी जाती हंसकर..

तू रंग बदलती तितली सी लगती है..


कभी दर्द जहां का सहती..

कभी ख्वाबों में खोई रहती..

जाने कब क्या-क्या करती..

हर बार नयी-नयी सी लगती है..


कभी शर्माती है दुल्हन सी..

कभी हरकतें बच्चों सी..

जाने कैसे समझाऊँ तुझको..

तू निर्मल नदी सी लगती है...


तु मुझको बिल्कुल पगली सी लगती है....

12 comments:

Udan Tashtari said...

सुंदर कविता और उतनी ही सुंदर बच्ची की तस्वीर.

Reetesh Gupta said...

जाने कैसे समझाऊँ तुझको..
तू निर्मल नदी सी लगती है...

बहुत सुंदर एवं निर्मल भाव हैं मान्या

बधाई !!

Jitendra Chaudhary said...

सचमुच तो मुझको पगली सी लगती है।

प्यारी कविता और बहुत ही प्यारा चित्र।
तुम्हारे बचपन की फोटो सी लगती है।
हाँ, सचमुच तो मुझको पगली सी लगती है।

Anonymous said...

सोए हुए बच्चे के मुस्कान सी लगती है,
ओस में भीगे फूल सी लगती है।
प्यारा चित्र और प्यारी सी कविता।

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

very good.....maza aagya.

Mohinder56 said...

सुन्दर सहज शब्दो मे लिखी हुई कविता बहुत पसन्द आयी.. बहुत कुछ पढना बाकी है आप के ब्लाग पर

Chintan Shukla said...

Nice one...

Cheers
Chintan

Anonymous said...

bahut pyaari kavita hai..sashwatta hai..simple words but well arranged...flow is perfect...
gud!

Monika (Manya) said...

आप सबने इतना पसंद किया बहुत शुक्रिया.. उम्मीद है आगे भी सबका स्नेह बना रहेगा।

Divine India said...

एक अर्थवान -प्रवाहमान शोख़-चंचळ और लयबद्ध कविता…अतिसुंदर!!यह प्रयास सचमुच उत्कृष्ट है…बधाई!!!

Anonymous said...

hiiiiiiiiiiii nidhi here..............aapki sundar kavita padh kar mera dil garden garden ho jata hain jaha charo taraf red rose ka plants hain.............majak nahi kar rahi hu........aap itne achese apne bhavo ko shabd ke jaal me piro lete ho ki mein kya batau........jabhi koi kavita padh ti hoon aapka yaad zaroor ata hain.........carry on with ur fabulous poems.............cia

Unknown said...

जब भी मिलता हूं तुझसे..
तू अलग, अलबेली..
मुझको बिल्कुल पगली सी लगती है..

कभी उलझती.. कभी सुलझती..
कभी अनगढ, अबूझ पहेली सी..
अजनबी..पर बिल्कुल अपनी सी लगती है..

Manya ji ye meri mitre ki tarah lagti hai.........

sunder kavita....