Thursday, February 8, 2007

एक कल्पना जीवित अब भी मेरे मन में...


जीवन के इस कटु सत्य के बीच...

एक कल्पना जीवित अब भी मेरे मन में...

जब सारे चेहरे धुंधलाये दिखते हैं परछाईयों से...

जब सारे खोये-खोये से हैं इस भीङ में..

जाने क्युं एक तुम्हारा चेहरा अब भी बसता मेरे नयन में..

एक कल्पना अब भी जीवित मेरे मन में..

जब सारी अभिलाषाएं डरी सहमी सी...

और आशाएं टूट के बिखरी मन के आंगन में..

जाने क्यूं एक तुम्हारी आस अब भी मेरे स्वप्न में..

एक कल्पना जीवित अब भी मेरे मन में..

जब सारे एह्सास फीके भूलें से पङे हैं..

जब धूल जम गई है हृदय के दर्पण में...

जाने क्यूं तुम्हारे स्पर्श की सिहरन अब भी बसी मेरे मन में..

एक कल्पना जीवित अब भी मेरे मन में..

जब सारी आवाज़ें गुमसुम खोई सी हैं..

जब गीत सारे खो चुके इस गहरे सूनेपन में..

जाने क्यूं तुम्हारी आवाज़ सुनाई देती मेरी हर धङकन में..

एक कल्पना जीवित अब भी मेरे मन में..

अब बाकी नहीं इन्तज़ार किसी का..

पर जाने क्यूं तेरे आने कि आस बंधी जीवन में..

जाने क्यूं तेरे दर्श की प्यास जगी अंखियन में..

हां, एक कल्पना जीवित अब भी मेरे मन में...



"कैसे भूलूं तेरा वो ख्वाबों में आना ...

और बिन कुछ कहे चुपचाप चले जाना..."

3 comments:

Divine India said...

"मन की जो आवृति है न, जब एक बार और पहली बार…किसी अनजाने को जानने की कोशिश करती है…तो अपने प्रत्येक रंगों से उसे आकर्षित करने लगती है,हर उत्साह-हर आनंद में उसे ही पाना चाहती है…लेकिन जब हालात विपरीत होते हैं तो ख्वाबों में उसे महसूस करना चाहती है…और यही आशा की उम्मीद की लकीर खींचती हैं…"
ख्वाबों के दर्प को सत्य के अनुमानों में सुंदर मुखडे को निर्मित करके देखा जाना अच्छा लगा…।

रंजू भाटिया said...

अब बाकी नहीं इन्तज़ार किसी का..पर जाने क्यूं तेरे आने कि आस बंधी जीवन में..

ek isi aas par yah jeevan bita diya hamne
ki kisi pal toh tu is raha se ho kar gujerga
behasq yah mera khyaal hai dil behlaane ko
par isi baat ko soch ke zindagi ka kuch lamha toh haseen gujerega !!

Anonymous said...

"कैसे भूलूं तेरा वो ख्वाबों में आना ...
और बिन कुछ कहे चुपचाप चले जाना..."

you are just amazing in every words!