दिन तो उदास था ही...
शाम भी आई चुपके-चुपके,
आंख चुराये हुये..
और रात अकेली चुपचाप रोती रही..
गर्म आंसू गिरते रहे..
तकिये को भिगोते हुये..
और भर आई धुंधलाई आंखें,
कोहरा और बढाती रहीं..
रात अकेली चुपचाप रोती रही..
एक सन्नाटा फ़ैला रहा आस-पास,
खमोशी की चादर ओढे हुये..
इस तन्हाई में जागी सोई नींद..
टूटे सपनों की यादें बुनती रही,
रात अकेली चुपचाप रोती रही..
काले साये घेरे रहे हर पल,
अंधेरा और बढाते हुये..
और उदास गमगीन सी रोशनी..
अंधेरा ओढे सिरहाने बैठी रही..
और रात अकेली चुपचाप रोती रही...
"तुम ही नहीं खो चुकी हैं.. तुम्हारी यादें भी,
शाम भी आई चुपके-चुपके,
आंख चुराये हुये..
और रात अकेली चुपचाप रोती रही..
गर्म आंसू गिरते रहे..
तकिये को भिगोते हुये..
और भर आई धुंधलाई आंखें,
कोहरा और बढाती रहीं..
रात अकेली चुपचाप रोती रही..
एक सन्नाटा फ़ैला रहा आस-पास,
खमोशी की चादर ओढे हुये..
इस तन्हाई में जागी सोई नींद..
टूटे सपनों की यादें बुनती रही,
रात अकेली चुपचाप रोती रही..
काले साये घेरे रहे हर पल,
अंधेरा और बढाते हुये..
और उदास गमगीन सी रोशनी..
अंधेरा ओढे सिरहाने बैठी रही..
और रात अकेली चुपचाप रोती रही...
"तुम ही नहीं खो चुकी हैं.. तुम्हारी यादें भी,
पर अचानक भींगी पलक तो लगा..
बाकी हैं कुछ निशान तुम्हारे अब भी.."
6 comments:
सुंदर भाव है मगर अत्याधिक मायूसी.
अब थोड़ा हँसी खुशी वाली रचना भी लाई जाये. :)
छलकते है जब आंसू विरह की वेदना में
वही आंसू गालों को सहलाते भी जाते है…
छोटी कृति पर विरहिणी की उष्म अग्नि की ताप
का स्पर्श भी हुआ…।धन्यवाद!!
मान्या जी, सुन्दर कविता है । वैसे वह रोना ही क्या रोना रह जाएगा जब अकेले में न रोया जाए ? किसी के साथ रोया हुआ रोना तो यादगार बन जाएगा ।
घुघूती बासूती
ghughutibasuti.blogspot.com
यूँ रात की काली स्याह चादर में
दिल बेसबब हो के धड़कता रहा
यादे भी तेरी कर गयी तन्हा
वक़्त के बदलते साए के संग यूँ ही दिल चुपचाप रोता रहा!!
बहुत ख़ूबसूरत अंदाज़ से आपने शब्दो को बँधा है ..मान्या आपने
समीर जी .. कोशिश करूंगी अगली बार की थोङी खुशी बिखेर सकुं।
बासूती जी बहुत धन्यवाद आप्का, पर मेरा मानना है .. आंसू तन्हाई के साथी हैं और हंसी मह्फ़िलों के लिये..
शुक्रिया दिव्य जो तुम उस ताप को मह्सूस कर पाये..
धन्य्वाद रन्जू.. जो इतनी सराहना की..।
bahut acchi kavita hai manya ji..waise me ye bhao wagerah nahi janta lekin aapki kavitaye asani se samajh aa jati hai..bahut kathin sabd istemal nahi karti aap..isilia aapki sabhi kavitaye bahut acchi hai..khastaur pe ye wali kavita bahut acchi hai..dhanyavaad
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