तुमसे दूर रह्कर भी दूर रह ना पाई। उन हसीन वादियों ने भी हर पल तुम्हारी याद दिलाई।जब भी बादलों ने पहाङों को अपने आगोश में लिया.. लगा तुम ने समेट लिया मुझे अपनी बाहों में। जब कभी ठंडी हवा छूकर गुजर गई.. तुम्हारे स्पर्श के एह्सास से मैं सिहर गई।जब भी झरने की कल-कल सुनी.. लगा तुम हंस पङॆ कहीं।जब भी कोहरे की दूधिया चादर ने घाटी को घेरा और बारिश हुई .. लगा तुम से मिलकर आंखें बरस पङी, मन कि प्यास बुझ गई।धवल चांदनी से नहाये बर्फ़ की चादर से ढके पहाङों को देखा.. महसूस हुआ तुम सोये हो मेरा आंचल ओढकर।उगते हुये सुरज और उसकी किरणों में रंग बदलती पहाङीयों को देख लगा.. तुम आये हो और मेरे चेहरे पर रंग छलके हैं खुशी के, हया के।जब फ़ुलों पर पङी शबनम को छूआ तो लगा.. तुम ने छू लिया मेरे होठों को।वादियों की खुश्बू सांसो के साथ जो भीतर तक समा गई... मानो तुम उतर गये मेरी रूह में।जब कभी ऊंची-नीची पगडंडियों पर चलते हुये कदम लङखङाये... तुमने आकर थाम लिया हाथों को और राह आसान हो गई।
हर आवाज़ में तुम्हारी ही सदा सुनी.. हर नज़ारे में तुम नज़र आये... हर एह्सास में तुम बसे थे... हर पल, हर बात, हर जगह तुम ही तुम थे... देखो ना! अब ये फ़िज़ायें भी छेङने लगी हैं मुझे।
"तुम्हें भूल पाना नामुमकिन है ये मानती हूं मैं,
फिर भी जाने क्यूं कोशिश कर बैठती हूं..
तुम्हें भूलने की कोशिश में को खुद को भूल जाती हूं मैं।"
6 comments:
"मेरे पढ़ने में और और सोंचने में अंतर कहाँ आया
लगा इसे जान कर इतना इसका नायक क्युं नही मैं था… सरक कर टकराती ये लहरें मेरे हृदयातट से, पुन: आगोश में भरने को आतुर बाहें पुकारती सागर से…उसी लहरों में पलट करके नहा जाता…वहीं शब्दों में रच-रच कर मैं भी जब लिखा जाता"… :)
लगता है कुछ ज्यादा हो गया…अब तो खुश हो…
अत्यंत प्रभापूर्ण रचना…।
बहुत सुन्दर। कुछ तो बात है जो पाठकों को, आपके ब्लॉग तक खींच कर लाती है।
चित्र बदलिए, थोड़ा बड़ा और बेहतर चित्र लगाइए।
लगातार लिखती रहिए।
वाह सुन्दर कविता।
शायर ने क्या खूब फरमाया है:
जब-जब तुम्हें भुलाया तुम और याद आए,
जाते नहीं हैं दिल से अब तक तुम्हारे साए।
शुक्रिया दिव्य, जो इतना अच्छा कहा.. रचना तभी सार्थक होती है जब पढ्ने वाला उसमें खुद को ढूंढे.. और तुमने ऐसा कह्कर सच में खुश कर दिया।
शुक्रिया जीतू भाई..आपका सुझाव पसंद आया चित्र मुझे भी कम पसंद था इसलिये बदल दिया.
Shrish Ji, शुक्रिया.. आपने भी अच्छा शेर कहा संदर्भ में..
सुन्दर भावनाएँ हैं मान्या जी । शब्द भी सुन्दर हैं ।
घुघूती बासूती
ghughutibasuti.blogspot.com
bahut hi sunder likha hai manya .bhaav se bahra hai har lafaz ..padhana acha laga ..
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