क्या करुं मैं जो इसे चाहत है किसी की,
जो ये चाहता है तुम्हें ही...
ये तो बस मेरा दिल है और दिल का क्या है
क्या करूं मैं जो ये बसे हैं आंखों में,
जो ये बस तुम्हारे हैं..
ये तो बस मेरे ख्वाब हैं मेरे और ख्वाबों का क्या है
क्या करुं मैं जो मन महसूस करता है इन्हें,
जो इन में बस तुम समाये हो..
ये तो बस एह्सास है मेरे और एह्सासों का क्या है
क्या करुं मैं जो इन्हें इन्त्ज़ार है किसी का,
जो ये तकती है तुम्हारी राहों को..
ये तो बस आंखें हैं मेरी और आंखों का क्या है
क्या करोगे तुम जो भूल चूका है कोई खुद को,
जो उसे बस तुम याद हो..
वो तो बस मैं हूं और मेरा क्या है....
" खामोश चाहत में जो असर होता...
ये अल्फ़ाज़ बोल पडते..
सारी इबारत मिट जाती..
ये पन्ने रो पडते.."
4 comments:
तुम्हारा मन प्यार की क्यारियों में अबतक क्यों
लहलहा रहा है,शायद भावनाओं का सागर इतना गहरा है की उसे समेटना मुमकिन नहीं…
jab udaas hoti hun to kahate ho ujaale ke paas jao...jab pyaar ki roshni ki baat karti ho to kahte ho kyun.. good .. well thnx
hmm!
achhi hai...
keep it up.
-jitu
Thnx jitu ji... hope u did not need an online spects..
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