Tuesday, January 16, 2007

तुमने तो मुझे जाना ही नहीं.........


तुमने मुझे बेवफ़ा का नाम तो दिया,.. पर वफ़ाओं का मतलब तो तुमने कभी जाना ही नहीं
अपनी चाहतों का तुम्हें हमेशा ख्याल था.. पर मेरी ख्वाहिशों को तुमने पहचाना ही नहीं,
तुमने मुझसे शिकवे तो बहुत किये.. पर मेरी शिकायतों को कभी सुना ही नहीं,
तुम मेरी नासमझी की बातें तो करते रहे.. पर तुमने मुझे तो कभी समझा ही नहीं,
मेरी भूलों का एह्सास तो तुम्हें सदा रहा.. पर अपनी गलतियों को तुमने कभी माना नहीं,
फिर ये रिश्ता तो टूटना ही था ना.. क्योंकि विश्वास का मतलब तो तुमने कभी जाना ही नहीं..



"मुझे पत्थर कहने से पहले एक बार छू तो लिया होता, पिघल कर वहीं बिखर जाता ये मोम क़ा टुकड़ा ..एक बार ईश्क की गर्मी का एह्सास दिया तो होता "

3 comments:

Divine India said...

अच्छी है... उस लड़की के लिये जो
शायद अपनी ईमानदार आस्था का
मूल्य चुकाया हो...दो धारणाओं की
टकराहट को अच्छा बिम्बित किया...।

Jitendra Chaudhary said...

"मुझे पत्थर कहने से पहले एक बार छू तो लिया होता, पिघल कर वहीं बिखर जाता ये मोम क़ा टुकड़ा ..एक बार ईश्क की गर्मी का एह्सास दिया तो होता "

वाह! वाह! यार ये तो घोर निराशावादी कविता है। लेकिन एहसास बहुत शानदार तरीके से व्यक्त किया गया है।

Monika (Manya) said...

thnx again jitendra ji.. par ajeeb baat hai aap tute huye rishton me aasha khoj rahe hn...