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खाली - खाली दिल....
कभी - कभी...
भर आता है.. आंख में....
कभी - कभी...
भर आता है.. आंख में....
पलकें झपकती हैं जब...
चुभता है.. ख्वाब का ....
कोई टुकड़ा आंख में...
खिला करते होंगे फूल...
फिर बहार के आने पे...
टूट के कब... जुड़ा है...
कोई पत्ता... फिर... शाख से.....
रेत के घरौंदे... टूटे...
समंदर के.. पास में...
घर से... बे- घर...
हो गये हम...
एक अदद...
आशियाने की...आस में....
टुकड़ा - टुकड़ा....
पहले तो फ़लक टूटा....
फ़िर ज़र्रा - ज़र्रा ज़मीं....
खींची गई पांव से.....
बे - ज़मीं.... बे - आसमां.....
खाक में मिला... वजूद मेरा....
खो गया.... खुद की ही तलाश में....
मर के भी... देखो....
ज़िंदा.. रह गये हम.....
जाने... कौन सी आस...
अटकी है... सांस में.....
किस दर्द पे....
अब निकलेगा दम.....
ये चिंगारी... कब....
बदलेगी राख में......
खाली - खाली दिल...
कभी - कभी... भर आता है...
आंख में....
6 comments:
शायद इस खाली-खाली जगह को भरने के प्रयास का नाम ही जिन्दगी है...........................
बहुत उम्दा-भावपूर्ण!!
मर के भी... देखो....
ज़िंदा.. रह गये हम.....
जाने... कौन सी आस...
अटकी है... सांस में.....
बहुत सुन्दर रचना, अत्यंत भावपूर्ण. ख्वाब किरंच बन चुभती है तो कुछ भी सार्थक नही लगता.
खाली - खाली दिल...
कभी - कभी... भर आता है...
आंख में....
सुन्दर। बधाई
जिंदगी के संघर्ष की कहानी
खिला करते होंगे फूल...
फिर बहार के आने पे...
टूट के कब... जुड़ा है...
कोई पत्ता... फिर... शाख स
hakeekat ko bayan kar diya........kabhi kabhi aisa bhi hota hai........bahut hi sundar bhavon se sanjoya hai......badhayi.
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