Saturday, August 29, 2009

खोया सा.. एक रिश्ता..


एक रिश्ता तेरा - मेरा.......
एक रिश्ता कुछ पूरा.... कुछ अधूरा......
कुछ तुम सा... कुछ मुझ सा...
एक रिश्ता... हम सा....
यादों के नर्म लिहाफ़ में लिपटा....
तेरी मेरी उंगलियों में उलझा...
कभी सुबह की करवटों में.....
कभी शाम के झुरमुटों से...
हर कोने से पुकारता... एक रिश्ता..
मेरी गोद में मुंह छिपाए....
तेरे कांधे पे सर को झुकाये....
सिसकता है रिश्ता.....
मुझ से हाथ छुड़ा तेरे पीछे....
साये सा चला है.. रिश्ता...
तुम्हें रोकता... मुझे बुलाता...
चलते - चलते रुका सा रिश्ता....
बढती दूरियों में... खोया सा...
सन्नाटे में गुम .. सदाओं सा...
ना तुममें शामिल... ना मुझमें...
अब अकेला चला है रिश्ता...
थकी - थकी सी सांसें लेता....
बंद पलकें किये... सोया है रिश्ता.....

3 comments:

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

थकी - थकी सी सांसें लेता....
बंद पलकें किये... सोया है रिश्ता.....

अति सुन्दर जी। बधाई।
आभार


"समण-समणी" श्रेणी का निर्माण आचार्य श्री तुलसी का जैन धर्म को "अवदान"
मुम्बई-टाईगर

M VERMA said...

चलते - चलते रुका सा रिश्ता....
बढती दूरियों में... खोया सा...
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रिश्ते भी थक जाते है.
कुछ रिश्ते तो पक जाते है. ----
बहुत खूब लिखा है
वाह

Udan Tashtari said...

गहरे भाव!