Saturday, January 3, 2009

जाने कैसे हो तुम...........


सोचती हूं तुम्हें.... की कैसे हो तुम....



अजीब सवाल है न...




जब तुम्हें महसूस करती हूं....




एक अजीब सा सुकून.....




एक अजीब सी कशिश....




दौड़ती है... मेरी रगों में.....




लगता है क्या मेरे दिल में...




बसे अहसासों जैसे हो तुम.....




जाने कैसे हो तुम........







सांवली रात... गोरी चांदनी....




झिलमिल तारे... और मदहोश हवा....




सब छूते हैं मुझे...




बातें करते हैं मुझसे....




तुम्हारी महक... तुम्हारी सदा...




मुझे समेट लेती हैं....




और जब बोझल पलकें...




नींद के आगोश में.. सोती हैं..



्सोचती हूं क्या ख्वाबों जैसे हो तुम....




जाने कैसे हो तुम............





रब की सूरत.. बंदे का सजदा...



बंद आंखों... जुड़े हाथों की....



खामोश प्रार्थना.....



इनमें बसते हो तुम....



जब भी हाथ उठा आंखें बंद की....



लगता है दुआओं जैसे हो तुम.....



जाने कैसे हो तुम..........





6 comments:

विजय तिवारी " किसलय " said...

मान्या जी
नमस्कार
बहुत अच्छे भाव और प्रस्तुति है आपकी

अहसासों जैसे हो तुम.....
ख्वाबों जैसे हो तुम....
दुआओं जैसे हो तुम.....


आपका -विजय

पुरुषोत्तम कुमार said...

अच्छी कविता।

Vikash said...

बहुत अच्छे

daanish said...

"rb ki soorat ,
jude haathoN ki khaamosh prarthna,
inmeiN baste ho tum..."

bahut hi khoobsurat rachna...
lafz.dr.lafz ek apnepn.sa izhaar
kalaa ka anupam upyogita ki jhalak

badhaaee. . . .
---MUFLIS---

Kavi Kulwant said...

bahut khoob!

Kavi Kulwant said...

Khoobsurat..