हंसते-मुस्कुराते चेहरों की खुशी में...
अचानक आंखों से पानी छलक आना..
बंद लबों में दर्द की लकीर का खिंच जाना...
कोमल चेहरे का अचानक सख्त हो जाना....
सपनीली आंखों में लहू का उतर आना...
इन बदलते मौसमों का मतलब क्या है..
जिंदगी कुछ तो बता तेरा सच क्या है...
थामे हुये हथेली से झटक कर हाथ छुड़ा लेना..
खुले हाथों की मुट्ठीयां भिंच जाना...
मिलते दिलों के सफ़र में अचानक पलट कर..
सीने में धोखे का खंजर चुभो देना....
इन बेगाने-बिखरते रिश्तों का मतलब क्या है...
जिंदगी कुछ तो बता तेरा सच क्या है...
पहले रोज़ बन के हमराह, हमसफ़र सा मिलना..
फ़िर एक दिन बनकर गैर नजर घुमा लेना....
रोज एक नयी राहगुजर से गुजरना .....
फ़िर भी मंजिल का ना मिलना...
इन अनजानी राहों का मतलब क्या है..
जिंदगी कुछ तो बता तेरा सच क्या है...
दिन भर कामों में उलझे रहना....
तरक्की के दौड़ में भाग-भाग कर थक जाना..
फ़िर भी आंखों में रातों को नींद ना आना..
मन में सुकून का ना होना....
इस बेचैनी का मतलब क्या है...
जिंदगी कुछ तो बता तेरा सच क्या है...
रोज़ एक नयी तलाश में घर से निकलना..
भीड़ में खुद को ढूंढने की कोशिश करना..
फ़िर हताश हो घर को लौट पड़ना....
अपने ही घर में मुसाफ़िरों सा रहना....
इन तन्हा चारदीवारीयों का मतलब क्या है..
जिंदगी कुछ तो बता तेरा सच क्या है.....
"जिंदगी कुछ तो बता ये तुझे क्या हो गया.."
15 comments:
अरे पोस्ट कहाँ है???
उपर की तस्वीर को या तो साइज में करो नहीं तो हटा लो अच्छा नहीं लग रहा है…
मैं पहले ही कहने वाला था।
पोस्ट लिखने से पहले पोस्ट हो गयी.. जो तुमने कहा करने वाली थी.. साईज कैसे बदलूं..
hii dear
its just amazing...suparb....
तरक्की के दौड़ में भाग-भाग कर थक जाना..
फ़िर भी आंखों में रातों को नींद ना आना..
मन में सुकून का ना होना....
इस बेचैनी का मतलब क्या है...
very nice and contemproray
बहु्त खूब!!
मान्या जी
सुन्दर और गहरी रचना।
बंद लबों में दर्द की लकीर का खिंच जाना...
कोमल चेहरे का अचानक सख्त हो जाना....
सपनीली आंखों में लहू का उतर आना...
इन बदलते मौसमों का मतलब क्या है..
रोज एक नयी राहगुजर से गुजरना .....
फ़िर भी मंजिल का ना मिलना...
इन अनजानी राहों का मतलब क्या है..
अपने ही घर में मुसाफ़िरों सा रहना....
इन तन्हा चारदीवारीयों का मतलब क्या है..
बधाई आपको।
*** राजीव रंजन प्रसाद
nice composition. :)
मान्या,
जिंदगीSSSSकुछ तो बता…।
बेहतरीन रचना है… शब्द तो छू ही गये साथ इसका आत्म-गर्जना भी समझ में आई…
लगता है आम समस्या से उठकर किसी ने तपती लौ पर हाथ रख दिया हो यह सोंच कर की कल का सवेरा तुझसे नहीं मेरे पीछे से होकर निकलता है…
वो नटखट पन में ऐसी उपेक्षा की जिंदगी की आशा का चेहरा और सुंदर हो उठा…
थोड़ा छोटा तस्वीर लगा ओ या code बदलना पढ़ेगा।
jindgi ka sach janne ki ek kosish. sach me bat utni saral nahi lagti jitni dikhti hai na?
mughe lagta hai manya ji, pahli do lines ko thik se pakarne per shayed kuch dhundhla - dhundhla sa dikhayi parega sayed wo he sach ho...
:)
khair aapki abhivyakti bari he jabardast dikhi hai is kavita me..
mughe puri ummid hai ki sach sach he hai.. kuch aur nahi..
यहि जानने में तो पूरी जिंदगी बीत जाती है ।
जिन्दगी अजीव शय है मान्या जी, पल पल रंग बदलती है शायद इसी लिये हम इसे लम्बे समय तक झेल पाते हैं बहुत सुन्दर रचना है आप की..
गहरायी में जाये तो खोजते खोजते जिन्दगी निकल जायेगी और कुछ हाथ नही आयेगा
बहुत सुंदर!!
आप सभी का बेहद शुक्रिया.. यूं ही आते रहियेगा.. तो लिखने का हौसला मिलता रहेगा..
पहले रोज़ बन के हमराह, हमसफ़र सा मिलना..
फ़िर एक दिन बनकर गैर नजर घुमा लेना....
रोज एक नयी राहगुजर से गुजरना .....
फ़िर भी मंजिल का ना मिलना...
इन अनजानी राहों का मतलब क्या है..
जिंदगी कुछ तो बता तेरा सच क्या है...
NICE & DEEP THOUGHT........
BAHUT KHUB MANYA JI.
Hi Manya, hw r u?
its been a while that i hav writtn something. i do keep writing poems but dont put them up very often due to various reasons.
surely will put up somethin new.
wats new with u?
tc..bye
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