Sunday, September 30, 2007

मेघा तुम अभी मत बरसना....


अभी गीला है मेरे घर का आंगन...

अभी नम है वो लीपी हुई मिट्टी...

बह जायेगी...

मेघा तुम अभी मत बरसना.....


रात जो छत पर डाली थी...

वो खटिया..वो चटाई..

अभी तक वहीं पड़ी है...

भींग जायेगी....

मेघा तुम अभी मत बरसना....


आंगन में सूखते वो कपड़े...

अभी सूखे नहीं हैं....

कुछ देर लगेगी उन्हें....

मेघा तुम अभी मत बरसना...


अभी चूल्हा भी सुलगाया नहीं मैंने...

अभी जलानी हैं...

कुछ सीली लकड़ियां....

कुछ नम से कोयले.....

मेघा तुम अभी मत बरसना...


उसे काम पर जाना है...

उसकी छतरी जो टूट गयी थी..

अभी ठीक नहीं करवाई है...

मेघा तुम अभी मत बरसना....


कल की बारिश से अभी तक....

गीला है मेरा तन..मेरी आंखें..

मेरे गीले बाल अभी सूखे नहीं हैं....

और गीला सा है मेरा मन...

मेघा अभी तुम मत बरसना...


9 comments:

Anonymous said...

nice
rachna

Udan Tashtari said...

अभी इतनी सुन्दर
कविता पढ़ रहा हूँ,
भाव अभी नम हैं,
टिप्पणी करना बाकी है...
मेघा तुम अभी मत बरसना....

Sajeev said...

bahut sundar aur anth
कल की बारिश से अभी तक....


गीला है मेरा तन..मेरी आंखें..


मेरे गीले बाल अभी सूखे नहीं हैं....


और गीला सा है मेरा मन...


मेघा अभी तुम मत बरसना...
waah

Manish Kumar said...

Barish ki is jhamajham mein aap meegh ko aisa aadesh kaise de sakti hain ? :)

उन्मुक्त said...

कविता अच्छी है पर शुरू का हिस्सा मेरे वेब ब्रॉउसर (लिनेक्स -फायरफॉक्स) में पढ़ाई में नहीं आ पा रहा है। यह इसलिये है कि इस्निपस् का विज़ट उसे ढ़क ले रहा है। अच्छा हो कि इस विज़ट को छोटा कर दें या फिर इसे दहिने तरफ रखें।

Anonymous said...

Correlation an emotion, and social affinity in which one-person stands with another person, even he/she is ready to prayer with the God.........मेघा तुम अभी मत बरसना....
Good.........

Anonymous said...

Bahut dino baad apki rachna padhne ko mili
bahut acchi kavita hai...! :)

Monika (Manya) said...

शुक्रिया रचना जी....

समीर जी आपने तो एक और अंतरा जोड़ दिया..

शुक्रिया सजीव जी..


मनीष जी .. जब सब बारिश को बुला रहे हैं.. मैंने सोचा मैं जरा.. रुकने को कह दूं...

उन्मुक्त जी.. शुक्रिया..विजट हटा दिया है..

शुक्रिया.. अविनाश जी.. यहां आकर मेरा हौसला बढाने का..

रंजन जी .. धन्यवाद..

Divine India said...

मान्या,
एक नया प्रयोग है जो तुमने कविता में करना चाहा है… ठीक लगा इस प्रकार से भी भाव को अभिव्यक्त करना… कई पंक्तियाँ पढ़ते वक्त "मेरा कुछ सामान लौटा दो" गीत की याद आ गई…
बहुत सुंदर तो नहीं कह सकता पर हाँ कुछ नया है और कुछ गढ़ा गया है…।