Saturday, September 8, 2007

रात भर सोई नहीं मैं....


रात भर सोई नही मैं...

सोचती तुमको रही...

चांदनी खिड़की पे खड़ी थी...

मैं खिड़की पे बैठी रही...

चांद से बातें हुई...

रोशन सितारों को तका...

नींद पास में थी...

पलकें मगर झपकी नहीं...

मुझसे नाराज हैं....

चादर, बिस्तर, तकिये मेरे...

उनको सोना है...मगर..

मैं सोचती तुमको रही...

आंखों में उलझे हैं ख्वाब कितने..

क्या जानोगे तुम....

इक बार मिल जाओ कभी..

देखना फ़िर मानोगे तुम...

रात मुझसे अक्सर....
पूछा करती है. एक सवाल..

जुल्फ़ सहलाती हवा कहती है..

उसे भी है मलाल....
क्यूं सोती नहीं मैं....
तुमने कभी जाना नहीं...

मैं तुम्हारी हूं..

पर तुमने कभी माना नहीं..

9 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत भावपूर्ण रचना है।

अनूप भार्गव said...

अच्छी कविता है । सुन्दर अभिव्यक्ति ।

कुछ अपनी पुरानी पंक्तियां याद आ गई :

कल रात एक अनहोनी बात हो गई
मैं तो जागता रहा खुद रात सो गई ।

Anonymous said...

Hmm.... :-)
acchi kavita hai
per nind ne jo berukhi ki hai wo bilkul thhik bat nahi hai...

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया भाव है, वाह!!

Chandra S. Bhatnagar said...

अक्सर ऐसा होता है कि किसी-किसी रात नींद नादारद हो जाती है और रात्रि की सूक्ष्म आवाज़ों से, हवा की सरसराहट से, चौकीदार की सीटी से, चाँद-सितारोँ से, मच्छरों की गुनगुनाह्ट से……एक प्यारी सी……बिल्कुल निजि सी मित्रता हो जाती है। रात बीत जाने पर यह सब चीज़ें एक स्वप्न सा प्रतीत होती हैं। वैसे ही स्वप्न का एहसास हुआ, यह कविता पढ़ कर्……एक एसा स्वप्न जिसका होना उसकी कोमलता और भगुरता पर ही निर्भर है……जो है तो सही पर नींद आते ही या सुबह होते ही ओझल हो जात है।

Jyoti said...

bahut khoob!

जै़गम said...

कविता ठीक है...मगर वाक्‍यों की संरचना बहुत सुंदर नहीं बन पाई। शब्‍दों में बहाव नहीं है.....यह खटकने वाली चीज है।

Divine India said...

बहुत दिनों बाद मौका लगा ब्लाग देखने का…काफी कुछ लिखा गया पर यहाँ मात्र एक…!!!
जहाँ तक कविता का प्रश्न है वह लयबद्ध भावनाओं से बहुत दूर तलक भटक कर चली गई है… कविता में एक तरह का अनायास ही संघर्ष व्याप्त हो गया है… मन के कोलाहल से शांति खो गई है एवं भावनाएँ समझ नहीं पाईं कि कैसे इसे लिखा जाये।

Rachna Singh said...

मैं तुम्हारी हूं..
पर तुमने कभी माना नहीं..
ab maan latae toh itnii sunder kavita naa bantee