मैंने उसे कई बार लिखते देखा है...
हाथ में कलम लिये.. सर झुकाये..
शब्दों को शक्ल देते हुये...
और ये भी की वो सिर्फ़ खुशी लिखता है..
एक दिन मैंने कहा - अच्छा लगता है...
तुम इतने खुश हो.. खुशी लिखते हो..
हंसी बांट सकते हो...
उसने अपनी नज़रें उठाई.. कलम रोकी..
मेरी तरफ़ देखा और हलके से मुस्कुराया...
और कहा- मैं खुशी-हंसी बस लिख सकता हूं...
पर देखो.. मैं हंस नहीं सकता...
मेरे दर्द के साये इतनी गहरे हो चुके हैं...
की मुझे हंसने में भी दर्द होने लगा है..
पर हां.. मैं हंसी लिख लेता हूं....
और मैं बस खुशी ही लिखता हूं...
क्योंकि मैं सबको खुश देखना चाह्ता हूं..
शब्दों के सहारे ही सही.. खुशी देना चाहता हूं..
और ये कहकर वो चुप हो गया...
अब समझ आया था मुझे....
क्यूं वो अकसर चुप ही रहा करता था...
मैंने उसकी साफ़ गहरी आंखों मे देखा....
उनमें खुशी की चमक नहीं थी...
उनमें गहरे साये थे.. वो कुछ पनीली सी थीं..
उसने ठीक कहा था....
वो हंसी सिर्फ़ लिख सकता है...
अचानक हवा का तेज झोंका आया...
और उसके लिखे पन्ने बिखर गये...
वो उन्हें फ़िर से समेटने लगा...
मुझे लगा वो पन्ने नहीं...
अपनी हंसी समेट रहा था...
जो उसके होठों को छोड़...
उन कोरे पन्नों में समा गयी थी....
17 comments:
manya jee !!!!!
itna sunder kaise likhtoo ho
kuch tips dae do
बहुत गहरी डुबकी मारी है। बहुत सुन्दर रचना है । अपने अन्तर्मन के एहसास को बखूबी ब्यान किया है।
और कहा- मैं खुशी-हंसी बस लिख सकता हूं...
पर देखो.. मैं हंस नहीं सकता...
मेरे दर्द के साये इतनी गहरे हो चुके हैं...
की मुझे हंसने में भी दर्द होने लगा है..
पर हां.. मैं हंसी लिख लेता हूं....
और मैं बस खुशी ही लिखता हूं...
चमत्कारी रचना। सूक्ष्म भावों को बहुत बारीकी से देखने वाली अदभुत रचना। एसा प्रतीत हुआ मानो, रचना की प्रेरणा भी सशक्त है। अति उत्तम। और लिखें।
मान्या जी, रचना ने इतना प्रभावित किया कि बहुत देर सोचता रहा। एसा लगा जैसे रचना के शीर्शक में कुछ बदलाव लाया जा सकता है। शायद थोड़ा छोटा किया जा सकता है। जैसे "शब्दांकित हंसी" या फिर "अप्रत्यक्ष विषाद"। अगर उचित लगे तो……
बहुत बढ़िया !
कविता बहुत अच्छी है । बहुत गहरे विचार और दर्द भी इसमें है ।
घुघूती बासूती
वाह!!! वाह!!! बहुत खूब...जबरदस्त भाव और गहराई. आज तो डबल बधाई रख लें. कमाल रचना है.
जहराई और सुन्दर भाव हैं.
मान्या जी....... आज की चकाचोँध और भाग दौर की ज़िंदगी में आपने उस पहलू उस भाव को छुआ जीसे देखने , समझने और महसूस करने के लिए वक़्त नही है कीसी के पास....
मैं खुशी-हंसी बस लिख सकता हूं...
पर देखो.. मैं हंस नहीं सकता...
मेरे दर्द के साये इतनी गहरे हो चुके हैं...
की मुझे हंसने में भी दर्द होने लगा है..
जीतनी सरल शब्द उतनी हीं गहरी भाव है इस रचना मे .....बहुत हीं ख़ूबसूरत रचना मान्या जी..
मुझेय एक ग़ज़ल याद आ गया....
तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो क्या ग़म है जीसको ्छूपा रहे हो...
और कहा- मैं खुशी-हंसी बस लिख सकता हूं...
पर देखो.. मैं हंस नहीं सकता...
मेरे दर्द के साये इतनी गहरे हो चुके हैं...
की मुझे हंसने में भी दर्द होने लगा है..
बहुत सुंदर मान्या....ह्रदय को छूती है आपकी कविता....बधाई
really nice..very thoughtful :)
chck my new post
C
इस कविता की गहराई को समझने के लिए बहुत कुछ समझना आवश्यक है…
काफी जटिल भाव को शब्द संकेत दिया है… संकेत ही तो दे दिया…।
बेहतरीन रचना…।
aap logon ko zabardasti tarif karne ki aadat pad gai hai.....kavita itni acchi bhi nahi hai
Manyaji kavita to ate jate bhavo ki abhivyakti ka nam hai
waise he sukh dukh v ate jate rahte hain
kabhi deri se to kavi jaldi-jaldi...hai na
ek aur dubkar likhi gayi rachna!
kahan gayab hain aap ?
रचना जी,परमजीत जी,शेखर जी,मनीष जी, बासूती जी,समीर जी, रजनी जी,संजीव जी, रीतेश जी,चिंतन, दिव्याभ,रंजन जी और अजनबी जी आप सभी का बेहद शुक्रिया जो अपना कीमती वक्त दिया, मेरी रचना पढी और अपने विचार दिये.. शुक्रिया..
hello manu kahan se laye ho itne sundar shabd aur itna dard.
lagta hai ki shayad dil ka har tar chhed diya hai aur seedhe dil tak ja raha hai aur kah raha hi ruko aur mujhe padhte raho
isse jyada main kuych nahi kah sakta kyon mere pass shabd nahi hai .
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