तुम उसे 'वेश्या' कहते हो...
क्योंकि उसने बेची है..अपनी देह..
अलग-अलग लोगों के साथ..
हर बार संबंध बनाये हैं उसने...
उसे हक नहीं समाज में..रहने का..
सम्मानित कहलाने का..
वो अलग है..तुम्हारी बहू-बेटियों से..
क्योंकि वो जैसे जीती है...
वो जीवन नरक है...
वो जो करती है...
वो पाप है...
उसे भूखों मर जाना था...
खुद को मिटा देना था..
पर खुद को बेचना नहीं था..
है.. ना?
पर एक बात कहो..
उन्हें क्या कहोगे तुम....
जिनकी रातें गुजरती हैं..
रोज़ एक नयी देह के साथ..
जिनके घर में पत्नियां भी हैं..
और प्रेमिकायें भी...
जो बाप हैं बेटियों के..
और भाई भी हैं.. बहनों के..
पर फ़िर भी खरीदते हैं देह..
और अलग-अलग रंग तलाशते है..
क्या वो 'बाज़ारू' नहीं?????
सिर्फ़ इसलिये की...
उन्होंने 'देह' बेची नहीं..
खरीदी है.....???!!!!
22 comments:
प्रश्न जायज़ है! पर उत्तर कौन दे?
फिर एक बार एक सटीक प्रश्न। एक एसा प्रश्न जो जिसका बुद्धीजीवी उत्तर देना मात्र पर्याप्त नहीं है...एक एसी विडंबना जिसका समाधान हम सभी से एक सामूहिक साहस और जागरूकता की अपेक्षा रखता है।
शेखर
तुलसी इस संसार में भाँति भाँति के लोग,लोगों को काम काफ़ी हैं आजकल।
विभावरी रंजन।
सही प्रश्न किया है।
Samaaj ka ek kadwa sach...... Jo phir ek baar aapney saamney laya...
Aur manya ji usney deh nahi becha per usney apna jameer to bacha hin hai....
गम्भीर सवाल को बडे सशक्त तरीके से उठाया, बधाई...
एकदम सही बात कही है मान्या जी आपने, बहुत ही सटीक और सशक्त शब्दों में.
संजीव जी, मेरे विचार से उसने अपना ज़मीर भी नहीं बेचा. उसने कुछ भी नहीं बेचा, न शरीर, न ज़मीर. मुझे गर्व है हर उस स्त्री पर जो आत्मनिर्भर है, वह भी उस समाज में जिसमें कायदे-कानून, गलत-सही, नैतिक-अनैतिक सब कुछ पुरुष तय करते हैं.
मेरा एक पश्न है. क्या मेहनत करने वाले किसी मज़दूर को आप कहेंगे कि उसने शरीर बेचा है, या फिर किसी इंजीनियर को बोलेंगे कि उसने अपना दिमाग़ बेचा है? हर कोई अपनी क्षमतानुसार और परिस्थिति अनुसार कमाता है और अपना जीवनयापन करता है. समाज का वह अंग जो अनुकूल परिस्थितियों में है स्वयं को प्रतिकूल परिस्थितियों वालों से श्रेष्ठ समझने के लिये ही इस प्रकार के सही-गलत मानदण्ड स्थापित करता है. यह दम्भ है. यह ऐसी खुशी है जो दूसरों को नीचा दिखाकर प्राप्त होती है!
some times i feel that if these woman were not there , there would be more rapes . How much burdent they really take away from society is never counted and yes manya you have again given voice to a question that those who should answer will never address
Manya read this when you get time
http://myownspacemyfreedom.blogspot.com/2007/03/raping-minor.html
मान्या,
अति सराहनीय रचना...आपके विचार आपकी कविता में पूरी ईमानदारी से दर्शाये गये हैं ...
बधाई
Brilliant One!!!
जायज है तुम्हारा सोंचना… समाज की यह मानसिकता अंतर्विरोधों से घिरी है जिसे तुमने सहजता से प्रस्तुत किया है…एकप्रकार से यह गंभीर उद्घोषणा है मन का चित्कार है बिलखते हुए रुंधे जिस्म का की गुहार है…
बहुत सुंदर लगा बिल्कुल अलग…।
पूरा का पूरा समाज है कट्घरे में.
कौन है जो देगा सजा?
कौन है जो करेगा वकालत ?
कौन है जो देगा गवाही ?
कौन है तैयार भुगतने को ?
जो भुगत चुका है ,
उसके पास भी नही , हैं उत्तर इन सवालों के .
वास्तव में बडा ही ज्वलंत प्रशन है यह। मगर फिर एक सवाल उठता है की इस का हल क्या है। जब भी चर्चा होती है कोई हल नही निकलता और नाहक ही बातें बनती है और विवाद पैदा होता है और कुछ लोगो की कुछ लोगो की प्रति राय बदल जाती है बस। मगर मैं कुछ और ही सोचता हूँ। पता नही कहॉ तक सही सोचता हूँ। सोच अपनी अपनी है , जो भी है आपके सामने है ।
इस विषय में कौन कितना दोषी है यह तो बाद की बात है , पहला प्रशन यह है की आप स्वम इस विषय पर कितना इमानदार है चाहे वो पुरुष हो या स्त्री। क्या सभी की नैतिक स्तर उंचा है या कहीँ गिर चूका है। क्या कभी खुद को दुसरे व्यक्ति के स्थान पर रख कर कुछ सोचा है ? क्या कभी किसी पुरुष ने इस संधृभ में पुरुषों को दोषी माना है या कभी किसी स्त्री ने इस सब में उनका भी सहयोग है ऐसा माना है ...
आप सब मुझसे जायदा समझदार है , किसी को कुछ बतलाने की जरुरह नही है। हम सभी के सामने उदाहरणों की लंबी कतार है जिस से साफ साफ पता चलता है कौन कितना दोषी है और किस का कहॉ कितना सहयोग है और किसका नैतिक स्तर कितना गिरा है ।
सिर्फ एक कोशिश की जरुरत है, की हम उठे और खुद के अन्दर झाकें। धन्यवाद !
ये कविता मान्या को समर्पित हैं
http://mypoemsmyemotions.blogspot.com/2007/08/blog-post.html
बहुत अच्छा लिखा है..ये एक गंभीर बहस का मुद्दा है
मान्या जी बहुत अच्छा प्रश्न किया है ये आपने मगर आज समाज के पास इसका कोई उत्तर नही होगा...आज क्या कल भी उत्तर नही मिलेगा...
अच्छा लेखन है आपका बधाई..इसी लिये तो आपके प्यार की खुश्बू हमे वापस ले आई...:)
सुनीता(शानू)
आप सबका शुक्रिया जो आप सबने अपना कीमती वक्त दिया और मेरी रचना पर सोचा.. पर ज्यादातर आप सबको मेरा प्रश्न अच्छा लगा.. सबने यही कहा उत्तर कौन दे.. मुझे अच्छा लगता अगर आप अपने विचार भी रखते.. फ़िर भी आप सबकी शुक्रअगुजार हूं .. साथ देने के लिये...
रचना जी.. आप्की कविता के लिये शुक्रिया.. एक नई सोच का अगाज़...
शानू जी.. आपका फ़िर से स्वागत हैं.. प्यार तो खींच ही लाता है.. जानेवालों को है ना?.. :)
u seems to be full of thoughts!Congrats..
ankur
ideotics.blogspot.com
आपने तो पुरे पुरुष समाज कि बखिया उधेङ के रख दी आपने सही लिखा है कि केवल देह बेचने वाले हि बाजारु नही होते है आपने समाज कि असलियत बयान कि ह अच्छी लेख है लिखते रहिए
आपने तो पुरे पुरुष समाज कि बखिया उधेङ के रख दी आपने सही लिखा है कि केवल देह बेचने वाले हि बाजारु नही होते है आपने समाज कि असलियत बयान कि ह अच्छी लेख है लिखते रहिए
एकदम जायज सवाल
संवेदनशील रचना
ईश्वर आपकी लेखनी को बरकत दे
आखिर 'देह' के खरीदारों को भी तो शर्म आनी चाहिए !
उत्तम रचना , साधुवाद !
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