मत कहो स्वयं को ठूंठ तुम...
क्योंकि मैं जानती हूं....
तुम ठूंठ नहीं हो....
तुम भी एक छायादार....
घने पेड़ हो....
बस वक्त की कड़ी धूप...
और गरम हवाओं के थपेड़ों ने...
सुखा दिया तुम्हारी नमी को....
और तुमने अपने पत्ते गिरा दिये...
और बन गये तुम छायाविहीन...
रूकता नहीं अब कोई राही भी यहां...
रह गये ये तना... और टहनीयां...
पर देखो फ़िर मौसम बदला है....
हवा में नमी है.. ठंडक है...
बादल छाये हैं... आसमां पर...
और बारिश होने लगी है...
इस नमी को सोख लो...
अपनी जड़ों में....
बहने दो इसे अपने भीतर....
देखना तुम फ़िर से खिल उठोगे...
नयी कोंपलें.... नये पत्ते... नये फ़ूल...
देखना राही फ़िर से रूकेंगे....
और ये तना.... टहनीयां....
बनेगी साक्षी तुम्हारे बीते कल की...
कि तुम ठूंठ नहीं थे.....
15 comments:
तुम भी एक छायादार....
घने पेड़ हो....
जैसा की तुम्हें पता है कि मैं आशावान कविताओं का गुलाम हूँ…क्या बात है मान्या कविता का प्रत्येक मोड़ बह रहा है अलग अंदाज में कुछ छू लेने को…
आशा तो हर कण में विद्यमान है मगर हम ही है जो इसे देखना नहीं चाहते…। उम्दा लिखा गंभीरता का भी अहसास भी कराया…।
बहुत बढ़िया मान्या जी!!
अति सुन्दर-एक विश्वास-एक आशा-एक सकारात्मकता-वाह!! बहुत खूब, मान्या, बधाई हो.
अति सुन्दर बहुत बढ़िया keep the good work going
बहुत ही अच्छी कविता
bahut hi sundar hamesha ki tarah ....manya ...ek asha ka deep jalaati yah rachana dil ko chu gayi ...
सु्दर !काश हब सब अपने अंदर किसी कोने में जमे हुए ठूंठ पर अपने चारों ओर फैली हुई उस संवेदना रूपी नमी को ग्रहण के दिल में ममत्व की कोपलें पैदा करें।
बहुत सुन्दर लिखा है......ज़िन्दगी की सच्चाई सामने खड़ी दिखी,वाक्य विन्यास भी सुव्यवस्थित हैं
आप कह रही हैं तो हम मान लेते हैं कि वह ठूंठ नहीं होगा.वक्त के साथ चीजें बदलती है. पेड ठूंठ का रूप धारण कर लेते है मगर मौसम बदलते ही वापस उसमें कोपलें फूटती हैं हरियाली छा जा जाती है, फल और फूल खिलते हैं.
कविता के पीछे छिपा भाव, उसकी भाषा और शैली सौंदर्य के साथ व्यक्त हुआ है सब काव्यात्मक है. आपका लेखन लगातार बेहतर होता जा रहा है, रचनाएं ज्यादा लयबद़ध और कविता जैसी रूप ले रही है.
शुभ हो
शुक्रिया.. विपुल जी.. आते रहियेगा..
मित्र दिव्याभ , कुछ ज्यादा ही तारीफ़ कर दी ,, शुक्रिया..
ध्न्यवाद संजीत जी...
समीर जी.. बहुत धन्य्वाद जो इतने सुंदर शब्द कहे...
Thanx Rachanaa Jee.. will try...
सत्येंद्र जी.. धन्य्वाद जो आपको.. कविता पसंद आयी...
रंजू जी शुक्रिया...आपके शब्द भी दिल को छू गये...
मनीष जी.. बहुत सुंदर भावनायें हैं आपकी..शुक्रिया...
विभावरी.. यहां आने का शुक्रिया... कविता तुम्हें पसंद आई .. जानकर अच्छा लगा.. आते रहना.. हौसला बढाने को....
गुलजारबाग... सही कहते हो .. वो ठूंठ नहीं है.. बहुत अच्छी बातें कहीं...मेरी रचना को पसंद करने ्का शुक्रिया और तुम्हारी शुभकामनाओं का भी..आप कहने की जरूरत नहीं...
Badi hin Saral bhaw sey ye rachna human being ko ek disha ek roshni de rahi hai.....
Good manya ji.
आपने लिखा....हमने पढ़ा
और लोग भी पढ़ें;
इसलिए कल 01/07/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
धन्यवाद!
AApke blog ka theme, cover behad khoobsoorat lagaa aur aapki ye kavita bhi bahut achhi lagi. well-penned
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