एक नदी है वो...
बहती अविरल..
ढूंढती अपनी दिशायें खुद...
चुन के अपनी राह..बह्ती चंचल..
सुनो इसकी कल-कल...
कितनी मृदु, निर्मल, निश्छल..
देखो इसके सौंदर्य को..
जाने कितनी शंख-सीपियां..
जाने कैसे चिकने पत्थर..
चमकीली महीन नर्म रेत..
सब कुछ कितना सुंदर..
बह्ती जाती है..आतुर..
मिलने सागर को..व्याकुल...
सागर से मिल सागर सी..
हो जायेगी विस्तृत...
देखो कैसी बहती अल्ह्ड़..
शीतल जल.. कल-कल..
15 comments:
प्राकृति पर लिखी एक सुन्दर रचना है-
एक नदी है वो...
बहती अविरल..
ढूंढती अपनी दिशायें खुद...
चुन के अपनी राह..बह्ती चंचल..
सुनो इसकी कल-कल...
कितनी मृदु, निर्मल, निश्छल..
बहुत भावप्रद है
बह्ती जाती है..आतुर..
मिलने सागर को..व्याकुल...
सागर से मिल सागर सी..
हो जायेगी विस्तृत...
--अति सुंदर, बधाई!!
अच्छी रचना है
मान्याजी अच्छे विचार है,...सुन्दर कविता है...
सुनीता (शानू)
bahut hi sundar bhaav hain manya ..
मिलने सागर को..व्याकुल...
सागर से मिल सागर सी..
हो जायेगी विस्तृत...
देखो कैसी बहती अल्ह्ड़..
शीतल जल.. कल-कल..
very true
अच्छा लिखा है आपने। जीवन भी इसी समान होना चाहिये…अविरल, निर्मल, निश्छल्…………अंत में इस ब्रह्मंड के असीम विस्तार की आगोश में खो जाने के लिये।
इस सीधी, सरल और सुंदर रचना पर मेरी बधाई स्वीकर करें।
"सागर से मिल सागर सी..
हो जायेगी विस्तृत"
बहुत बड़ी बात कह दी गयी है।
ओह, कितना अच्छा लग रहा है.. किसी भी पंक्ति में 'सांवरे' नहीं है!
मान्या,
नदी का अर्थ सामान्यत: जीवन से बहाव से लिया जाता है और उस अर्थ में यह कविता बहुत संदेश दे गई…जो जीवन के रुके बहाव को शायद :( रास्ता दे सके…जिस प्रकार नदी को सागर तक पहुंचने में किसी से रास्ता नहीं पुछना पड़ता वह स्वयं इतना सामर्थ रखती है की अपने आपको जिसमें समर्पण करना है उसे स्वयं तलाश लेती है…
आधुनिक कविता…थोड़ी और बड़ी हो सकती थी…मगर चलो>>Beautiful!!!!!
बह्ती जाती है..आतुर..
मिलने सागर को..व्याकुल...
सागर से मिल सागर सी..
हो जायेगी विस्तृत...
अच्छा लिखा है,बधाई
मन्या जी, आपकी कविता यहाँ पर उद्धरित की गयी है।
धन्यवाद
परमजीत जी, धुरविरोधी जी,समीर जी,राकेश जी,सुनीता जी,रंजू जी,शेखर जी, विकास जी,प्र्मोद जी,दिव्याभ, गायत्री जी, और मिश्रा जी.. आप सबों का बहुत ध्न्य्वाद..
r c mishra ji. आप्ने लिखा है की मेरी कविता यहां उद्धरित की गयी.. मैं सम्झी नही..
मान्या जी, शायद लिन्क लगाने मे कुछ गड़बड़ हो गयी, 'यहाँ' से मेरा आशय 'http://akshargram.com/pratibimb/?p=58' से था।
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