Saturday, July 12, 2008

एक बार तुम भी..............!!!!






एक रात अचानक... नींद से उठो तुम...



याद आये तुम्हें मेरी....



हर तरफ़ मुझे ढूंढो तुम...



ना खुद का... ना वक्त का होश हो तुम्हें...



मैं तुम्हारी नहीं... ये भी भूल जाओ तुम...



बस मेरी ही मेरी तड़प...



बस मेरी ही मेरी याद...



और बेचैन रहो तुम.... तुम पुकारो मुझे..



और मेरी सदा ना मिले...



बेबसी में जलो तुम...



बहुत तड़पाया है... तुम्हारी याद ने मुझे हर पल...



बिन जान जीती हूं हर पल....



बिना दिल धड़कन चलती है.....



चाहती हूं बस एक बार..... कुछ ऐसा ही.....



महसूस करो तुम....



एक बार मेरी जान... मुझे जियो तुम....!!!!!

Thursday, March 20, 2008

एह्सास की तलाश......


साथ होकर भी जाने क्यूं.... तन्हाई का एह्सास है...

हाथ थामे रहता है कोई... फ़िर भी लगता खाली हाथ है...

जाने कैसा सूनापन गहराया.....

चलती हूं जिस भीड़ में.... इंसानों का नहीं....

बस परछांईयों का साथ है.....

'सच'... में जीने को जाने क्यूं.... दिल करता ही नहीं....

अजनबी रिश्तों में.... जिंदगी की तलाश है.....

ख्वाब नहीं कोई..... बस एक झूठा सच है ये.....

जलेगा नहीं दीप कोई..... ये बुझती लौ सी आस है....

भटकता है 'मन' दर-ब-दर... खाता है ठोकरें......

इसे उजड़ी बस्ती में.... घर की तलाश है....

तेज हवाओं के रुख से.....

यहां डरता है कौन.....???

ये तो बारिश से... भड़कने वाली आग है.....

बुझे- बुझे से जज्बात..... सहमी-सहमी जुबां....

सूखे हुये पानी से.... गला अब तर होता नहीं.....

ये गीले आंसूओं से.... बुझने वाली प्यास है....

जाने कहां खोया है खुद को.....

मुझे ही नहीं.... आईने को भी.....

मेरे अक्स की तलाश है........





Saturday, December 15, 2007

सवाल?????? जिंदगी???????जाने क्या????


रूके हैं कुछ खारे से पल....

पलकों की दहलीज़ पर...

देते हैं दस्तक हर पल....

कैसे दूं इज़ाज़त....

ज़मीन नहीं पैरों तले...

साया नहीं आसमां का...

सर पर..

जाने किस ज़मीन पर...

चलते हैं कदम...

दिन कभी ढलता नहीं....

ना कभी होती है सहर...

जाने किस घड़ी की...

सूईयों पर बीतता जाता है वक्त...

मंज़िलों की तलब नहीं....

नामालूम से रास्ते हैं....

चली जाती हूं अकेले ही...

जाने कब खत्म होगा सफ़र...

ना सुनाई देती है कोई सदा...

ना खिलते हैं कभी लब....

क्या करता खुदा भी मेरा...

मैंने कोई दुआ की ही कब...

ना पूछो मेरी उदासी का सबब...

ना सवाल करो मेरी हंसी पर..

बदलते मौसमों को कौन रोक सका है...

किसने की हुकूमत हवा के रूख पर...

हां कुछ अजीब है मेरी दास्तां....

उसने जाने किस स्याही से...

जाने कौन सी इबारत लिखी है...

जिंदगी के पन्नों पर....

जो मैंने ना समझा....

वो तुम क्या समझोगे....

क्यूं उलझते हो...

'मन' की उलझन से....

तुम भी खो ना जाओ कहीं...

इसलिये कहती हूं....

लौट जाओ अपनी दुनिया में...

अपनी राहों पर....
कभी खिली है चांदनी....
अमावस के आसमान पर????



Sunday, November 25, 2007

कुछ इस तरह... जिंदगी मिली मुझसे...


कुछ इस तरह...

जिंदगी मिली मुझसे...

जैसे मिला हो कोई....

अजनबी...अचानक.. यूं ही...

साथ निभाये दो पल का...

और दूर चला जाये....

कुछ इसी तरह....

जिंदगी मिली मुझसे....

कहा कुछ नहीं....उसने...

बस दो निगाहें..उसकी...

करती रही हजार सवाल...

खामोशी मेरी कहती रही...

बस इसी तरह ...

जिंदगी ने बात की मुझसे...

अभी वक्त है....

तलाश खत्म होने में....

पर फिर मिलूंगी...

कभी ना लौटने को...

और फ़िर इस तरह....

जिंदगी बिछड़ गयी मुझसे....

Sunday, October 21, 2007

वादा....


समंदर.... साहिल...

बलखाती मौजें...

भीगे अलसाये पत्थर..

सिंदूरी शाम....

थका-थका सा सूरज..

लौटते पंछी....

गीली पोली सी रेत...

धंसते हैं तेरे-मेरे कदम...

बनाते हैं निशां...

हम हाथ थामे.. चलते हैं..

नंगे पैर... आगे...

कभी.. जब..

पीछे मुड़ के देखती हूं...

रेत के निशां..

मिटा चुकी होती है...

कोई आती-जाती लहर..

नमकीन पानी से...

अधभींगा बदन...

छिल सा जाता है..

जो गुजरती है हवा...

टीसता है दर्द...

और अचानक...

मेरी हथेली पर...

कस उठती है...

तुम्हारी पकड़...





Sunday, October 7, 2007

बस यूं ही..........


ख्वाब आंखों में लिये...

रतजगे करता है कोई...

पूछती हूं...

बंजर हुई नींदों की वजह...

कहता है..

बस यूं ही.........


कभी बे-साख्ता शेर..

कहे जाता है..

कभी ग़जलें लिखता है...

पूछती हूं..

हवाओं पे सज़दे की वजह..

तो.. बस यूं ही...


मेरा दीदार किया करता है...

कभी ख्वाबों में...

कभी तस्वीरों में...

पूछती हूं..

खोयी-खोयी खामोशी..

का सबब...

फ़िर वही.. बस यूं ही...

Sunday, September 30, 2007

मेघा तुम अभी मत बरसना....


अभी गीला है मेरे घर का आंगन...

अभी नम है वो लीपी हुई मिट्टी...

बह जायेगी...

मेघा तुम अभी मत बरसना.....


रात जो छत पर डाली थी...

वो खटिया..वो चटाई..

अभी तक वहीं पड़ी है...

भींग जायेगी....

मेघा तुम अभी मत बरसना....


आंगन में सूखते वो कपड़े...

अभी सूखे नहीं हैं....

कुछ देर लगेगी उन्हें....

मेघा तुम अभी मत बरसना...


अभी चूल्हा भी सुलगाया नहीं मैंने...

अभी जलानी हैं...

कुछ सीली लकड़ियां....

कुछ नम से कोयले.....

मेघा तुम अभी मत बरसना...


उसे काम पर जाना है...

उसकी छतरी जो टूट गयी थी..

अभी ठीक नहीं करवाई है...

मेघा तुम अभी मत बरसना....


कल की बारिश से अभी तक....

गीला है मेरा तन..मेरी आंखें..

मेरे गीले बाल अभी सूखे नहीं हैं....

और गीला सा है मेरा मन...

मेघा अभी तुम मत बरसना...