
रात अमावस की है....
मगर याद की वादी में....
तेरे प्यार का चांद खिला है....
उसी चांदनी से ... भीगा मेरा मन....
रूप सुनहरा मेरा खिला है...
तेरे ही प्रेम का सोलह-श्रृंगार है...
तुझे छूकर ही... ’मन’ बहका-बावरा हुआ है....
नैना -चंचल.. ठहरे हैं तेरी राह पर...
तेरे एहसास से... तन मेरा महका हुआ है...
तुम ही तुम हो मुझमें.... मैं कहां हुं....
तुम से ही मिलकर... तुम में खोकर.......
मैंने सब पा लिया है...........
बहुत दूर हो तुम मुझसे... लेकिन...
तुमने मेरा हर पल बांध लिया है....
संग तुम्हारा हर धड़कन में....
तुम्हें इस ही नहीं....
मैंने हर जनम में पा लिया है...
"तुम्हें पाने की चाह नहीं ’सांवरे’... बस पूर्ण समर्पण का भाव है..
तुम तो मेरे ही हो सदा से.. प्यास में भी बस तृप्ति का एह्सास है"