कभी दरो-दीवार सा
होती हूँ
कभी झरोखे सा
तो कभी खिड़की
कभी बारिश में
भींगा आंगन होती हूं
कभी धूप में तपती
छत भी
कभी चौखट सी
कभी दीवट सी
मैं आंगन का
तुलसी चौरा भी
कभी रसोई सी
कभी बैठक सी
कभी कमरा
तो कभी कोना भी
मैं औरत हूँ
मैं घर होती हूँ
9 comments:
Excellent!
Long time no see.
My email and mobile numbers are same. Looking forward..
Thanks!! I don't have both with me. I rarely write these days. Good to see you.
Thanks!! I don't have both with me. I rarely write these days. Good to see you.
Khuubsurat :-)
J
लिखती रहिये । अच्छा लिखती हैं ।
ये बढ़िया है।
Can i connect directly with u mam.
❤️
लाजवाब जी
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