एक टुकड़ा धूप का... फैला है...
खिड़की से उतर.. मेरे कमरे में...
उज्जवल.. उष्ण...
बिल्कुल तुम्हारे स्पर्श सा...
सर्द... सीली.. हवा...
जीवंत हो रही है...
कोमल.. ताप से...
बोझल साया... गुम हुआ...
स्फूर्त-देह... प्रफुल्ल-हृदय...
तुमने फूंके प्राण से....
सौम्य प्रकाश...फैला मुझ पे..
आँखें खोली...मैंने...
चिर-तिमिर के.. अंक-पाश से...
रोशन.. विस्तृत.. व्यक्तित्त्व तुम्हारा..
तुम... भानु-ज्योत सम..
मैं पुलकित-आलोकित...
रूप मेरा.. सुर्य-मुखी सम...
मैं खड़ी.. धूप के टुकड़े के बीच..
सोचती हूं तुमको...
तुम्हारी सौम्य मुस्कान...
और मैं.. गुम.. तुम्हारे बाहुपाश में...
खिड़की से उतर.. मेरे कमरे में...
उज्जवल.. उष्ण...
बिल्कुल तुम्हारे स्पर्श सा...
सर्द... सीली.. हवा...
जीवंत हो रही है...
कोमल.. ताप से...
बोझल साया... गुम हुआ...
स्फूर्त-देह... प्रफुल्ल-हृदय...
तुमने फूंके प्राण से....
सौम्य प्रकाश...फैला मुझ पे..
आँखें खोली...मैंने...
चिर-तिमिर के.. अंक-पाश से...
रोशन.. विस्तृत.. व्यक्तित्त्व तुम्हारा..
तुम... भानु-ज्योत सम..
मैं पुलकित-आलोकित...
रूप मेरा.. सुर्य-मुखी सम...
मैं खड़ी.. धूप के टुकड़े के बीच..
सोचती हूं तुमको...
तुम्हारी सौम्य मुस्कान...
और मैं.. गुम.. तुम्हारे बाहुपाश में...
2 comments:
kavita achhee hai. har samay gamon ki
bouchhar health ke liye theek nain.
pls. vishay badaten.
Dil ko chu gaya..!!! Beautiful..!!!
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