Thursday, February 11, 2010

’अमर्यादित’...


बस देह से देह के घर्षण से...
कोई अपवित्र नहीं हो जाता...
यूं लुट नहीं जाती ’इज्जत’ किसी की..
यूं नहीं हो जाता कोई ’अमर्यादित’...
तुमने किसी ’मर्यादा’ का उल्लंघन किया नहीं...
तुमने नहीं किया किसी सीमा का अतिक्रमण...
सीमा लांघी हैं... किसी और ने अपनी मर्यादाओं की...
उसी ने जगाया है... खुद में सोये शैतान को...
इससे तुम नहीं हुई कलुषित... कलंकित...
’इज्ज्त’ का संबंध तुम्हारी देह से नहीं..
तुम्हारी आत्मा से है....
ना तुम अपराधी... ना तुम्हारा कोई दोष है...
तुम ना सर झुकाओ .. ना नजरें चुराओ...
’बलात्कार’ ... ये शब्द तुम्हारे नहीं...
इस ’समाज के माथे का कलंक’ है....
तुम कल भी हमारी थी...
तुम आज भी अपनी हो..
तुम सर उठाओ.... आगे बढ़ो....
उन वहशी.... दरिंदों को सजा दिलाओ..
यही तुम्हारा हक है...
तुम नारी नहीं नारायणी बनो...
त्रिशूल थाम साह्स का....
नेत्र खोल अपने प्रतिघात का...
महिषासुर मर्दिनी बनो....
इज्जत अगर नहीं होती...
तो वो नहीं होती...
ऐसे... मानवरूपी दानवों को...
तुम्हारा तो सिर्फ़... शरीर..
क्षतिग्रस्त होता है....
इन घावों को भरने दो तुम....
कुरेदों जड़ें... इन विष-बेलों की....
उखाड़ फेंकों इन्हें...
तुम जीओ... जीना मुश्किल कर दो उनका...
उम्मीद है... ऐसा कर पाओ तुम..
इस समाज के दोहरे मापदंडों से...
ना डरो तुम...
साथ तुम्हारा... देंगे हम.....
क्यूंकि अपनी - अपनी आत्मा को...
हमें स्वयं 'मर्यादित' रखना है...

11 comments:

Unknown said...

सही बात है
देह से आगे मन की पवित्रता है
वलात्कारी देह ही झूठी कर सकता है

M VERMA said...

क्यूंकि अपनी - अपनी आत्मा को...
हमें स्वयं ’र्मयादित’ रखना है...
सुन्दर भाव की रचना. सार्थक सोच को उन्मुख करती.

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

पहली दो पंक्तियाँ जिस तरह से 'इज्जत' की प्रचलित यांत्रिक अवधारणा पर प्रहार करती हैं, वह अद्भुत है। सोचने में भी निषिद्ध को एकदम से सामने रख आप ने पाठक के मस्तिष्क पर ऐसा हथौड़ा मारा है कि आगे की समझ के लिए द्वार भड़ाक से खुल जाता है।
साधुवाद।
ब्लात्कार को बलात्कार, साह्स को साहस और र्मयादित को मर्यादित कर दें।

रानीविशाल said...

Sundar Bhavo wali prabhavit karati rachana....Aabhar!!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/

Udan Tashtari said...

’इज्ज्त’ का संबंध तुम्हारी देह से नहीं..
तुम्हारी आत्मा से है....

-एकदम सही!

Arvind Mishra said...

एक तेजस्वी रचना -बधाई !

प्रज्ञा पाण्डेय said...

bahut achha
bahtrin prastuti

अपूर्व said...

जबर्दस्त, साहसिक और पूर्ण प्रभावी रचना...

संजय पाराशर said...

स्थितप्रज्ञ मनुष्य के मुख से प्रस्फुटित सी ..
आपकी रचना हृदयस्पर्शी है....
थैंक्स ......

नवनीत नीरव said...

बिलकुल मर्यादित रचना.....अद्भुत

ashok raaj said...

Kya kahun..!!! Shabd nahi hai..!!! Mai iswaqt bqhut hi prabhabit hu aapki iss rachna se..!!!