तन्हाई दिल में घर किये बैठी है....
अंघेरे मकां का खौफ़ नहीं मुझको....
अंघेरे मकां का खौफ़ नहीं मुझको....
आहिस्ता - आहिस्ता दर्द बरसता है....
टूटी छत से ज्यों पानी रिसता है....
मेरी नसों में लावा बहता है...
पैरों तले अंगारों का खौफ़ नहीं मुझको.....
रोम - रोम मेरा दिये सा जलता है...
अस्थियों का पिंजर चटकता है....
मेरी आंखों में पिघला शीशा रहता है....
जलते सूरज का खौफ़ नहीं मुझको.....
पल - पल साथ तू जुदा सा चलता है...
अजीब ढ़ब तेरे प्यार का लगता है...
लबों से दिन - रैन तेरा नाम सुमरता है....
रिसते ज़ख्मों के लहू का खौफ़ नही मुझको....
ज़िद.. जुनून.. दीवानगी.... दिलो - दिमाग में..
घर किये रहती है.....
इस बेदम... थकी दुनिया के.. नकाबी चेहरों..
का खौफ़ नहीं मुझको.....
7 comments:
आहिस्ता - आहिस्ता दर्द बरसता है....
टूटी छत से ज्यों पानी रिसता है....
मेरी नसों में लावा बहता है...
पैरों तले अंगारों का खौफ़ नहीं मुझको.....
Manya its Amazing.. No more words for expretions.. wonderful
wah ji wah bahut khub
"आहिस्ता - आहिस्ता दर्द बरसता है...
टूटी छत से ज्यों पानी रिसता है...
मेरी नसों में लावा बहता है ...
पैरों तले अंगारों का खौफ़ नहीं मुझको...."
क्या खूब लिखा । बधाई ।
एक शानदार रचना।
मुश्किल टिप्प्णी से बचना।
निरंतर, अविराम लिखें
सुबह शाम लिखें
ज़िद.. जुनून.. दीवानगी.... दिलो - दिमाग में..
घर किये रहती है.....
इस बेदम... थकी दुनिया के.. नकाबी चेहरों..
का खौफ़ नहीं मुझको.....
Wah! kya baat hai..bahut khub!!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
जलते सूरज का खौफ़ नहीं मुझको.....
या शायद जलता सूरज ही तो हौसला देता है.
बहुर सुन्दर रचना
आहिस्ता - आहिस्ता दर्द बरसता है....
टूटी छत से ज्यों पानी रिसता है....
मेरी नसों में लावा बहता है...
पैरों तले अंगारों का खौफ़ नहीं मुझको...
बेहतरीन..वाह!
Post a Comment