Saturday, July 12, 2008

एक बार तुम भी..............!!!!






एक रात अचानक... नींद से उठो तुम...



याद आये तुम्हें मेरी....



हर तरफ़ मुझे ढूंढो तुम...



ना खुद का... ना वक्त का होश हो तुम्हें...



मैं तुम्हारी नहीं... ये भी भूल जाओ तुम...



बस मेरी ही मेरी तड़प...



बस मेरी ही मेरी याद...



और बेचैन रहो तुम.... तुम पुकारो मुझे..



और मेरी सदा ना मिले...



बेबसी में जलो तुम...



बहुत तड़पाया है... तुम्हारी याद ने मुझे हर पल...



बिन जान जीती हूं हर पल....



बिना दिल धड़कन चलती है.....



चाहती हूं बस एक बार..... कुछ ऐसा ही.....



महसूस करो तुम....



एक बार मेरी जान... मुझे जियो तुम....!!!!!

8 comments:

अबरार अहमद said...

जिनके लिए रातों को उठ उठ कर रोते हैं।
अपने घरों में वो आराम से सोते हैं।।
कुछ ऐसा ही एहसास करा दिया आपकी इस रचना ने। जुदाई का दर्द आंखों के सामने गुजर गया। और शायद वह दौर भी जब इसे हमने जीया था। इस बेहद भावुक रचना के लिए आपको बधाई। लिखते रहिए।

Udan Tashtari said...

अरे, कहाँ गायब थीं इतने दिन. पुनः स्वागत है. अब नियमित लिखें.

Rachna Singh said...

god tha tyou are back see we have not forgotten you

subhash Bhadauria said...

ये मोजिज़ा भी मुहब्बत कभी दिखाये मुझे.
संग तुझ पे गिरे और चोट आये मुझे.
(क़तील सिफ़ाई)मोजिज़ा-चमत्कार. संग-पत्थर.

कुछ ऐसी ही आरज़ू आपकी है.आमीन
मेरी पसंद प्राया छन्द बद्ध रचनायें होने के कारण अछान्दस पे कहना मुश्किल होता है पर बात प्रामाणिकता और सादगी से कही जाये तो असर होता ही है.आपकी रचना के जज़्बात अपनी तासीर रखते हैं.बयान ज़ारी रहे.

शोभा said...

मान्या जी
बहुत बड़ी सज़ा सुना रही हैं आप किसी को-
चाहती हूं बस एक बार..... कुछ ऐसा ही.....




महसूस करो तुम....




एक बार मेरी जान... मुझे जियो तुम....!!!!!
दिल से लिखी गई कविता दिल तक पहुँची है। बधाई स्वीकारें।

Manish Kumar said...

achcha laga aapko punah yahan dekh ke. achcha likha hai aapne.

Abhay said...

एक बार मेरी जान मुझे जियो तुम

एक कविता होती है। एक पुकार होती है। दोनों में अंतर होता है। आग्रह का अंतर। आपकी इस रचना में बड़ी शिद्दत से आग्रह भाव उभर कर सामने आता है। इसलिए इसे कविता के बजाए एक प्रेयसी की प्रणय पुकार मान लेने को जी कर रहा है। विरह से भरी रूमानी कविता एक प्यारी, दिलकश और मिठी जिद से सराबोर है। नव यौवन के रस लबरेज है। लोच से लैस है।

एक रात अचानक नींद से उठो तुम....
याद आएगी तुहें मेरी ..
हर तरफ मुझे ढूंढो तुम...

ऐसा लगता है गहरे में छुपी प्यास या अवचेतन के किसी अंधेरे कोने में दबी पड़ी हुई पुकार है। जो शŽदों के रूप में सामने आ गई है।

बस मेरी ही तड़प ...
बस मेरी ही याद...
और बैचेन रहो तुम...

मानो कोई अंदर की बैचेनी इतनी बड़ी हो गई है कि जिसे देकर हल्का होने की कोशिश है। यहां एक किस्म की गर्मी है। तड़प है। बेचैन होने और सायास बेचैनी बांटने की कशिश है। उससे हासिल होने वाला आत्मसुख है।

चाहती हूं बस एक बार
कुछ ऐसा ही महसूस करो तुम
एक बार मेरी जान
मुझे जियो तुम ॥

युवा उर्जा । जो कभी छलकती है। आतुर है पैमाने से बाहर आने के लिए। आग्रह है सभी आग्रह को तोड़ देने का। करीब आकर छू लेने के लिए। बांहों में भर लेने के लिए। इस स्तर पर आते आते या कविता के इस मोड़ पर पहुंचते पहुंचते मुझे यह दो केंद्र बिंदुओं या दो पात्रों के बीच का बेहद निजी और अंतरंग संवाद के रूप में दिखायी पड़ने लगता है। हो सकता है मेरा अपना भ्रम है। पर आपके शŽद वाकई जिवित जान पड़ते हैं।

बहुत बेहतर मान्या
शुक्रिया

Unknown said...

Bahut hin umda........Dard bhari.....

Per jissey hum bahut pyar kartey hai ussey ye sazaa ???? Shayad khud ko aur dard dene waali baat hai manya ji...

Anyway bahut hin acchi rachana.