Thursday, March 20, 2008

एह्सास की तलाश......


साथ होकर भी जाने क्यूं.... तन्हाई का एह्सास है...

हाथ थामे रहता है कोई... फ़िर भी लगता खाली हाथ है...

जाने कैसा सूनापन गहराया.....

चलती हूं जिस भीड़ में.... इंसानों का नहीं....

बस परछांईयों का साथ है.....

'सच'... में जीने को जाने क्यूं.... दिल करता ही नहीं....

अजनबी रिश्तों में.... जिंदगी की तलाश है.....

ख्वाब नहीं कोई..... बस एक झूठा सच है ये.....

जलेगा नहीं दीप कोई..... ये बुझती लौ सी आस है....

भटकता है 'मन' दर-ब-दर... खाता है ठोकरें......

इसे उजड़ी बस्ती में.... घर की तलाश है....

तेज हवाओं के रुख से.....

यहां डरता है कौन.....???

ये तो बारिश से... भड़कने वाली आग है.....

बुझे- बुझे से जज्बात..... सहमी-सहमी जुबां....

सूखे हुये पानी से.... गला अब तर होता नहीं.....

ये गीले आंसूओं से.... बुझने वाली प्यास है....

जाने कहां खोया है खुद को.....

मुझे ही नहीं.... आईने को भी.....

मेरे अक्स की तलाश है........





11 comments:

Pramod Kumar Kush 'tanha' said...

मुझे ही नहीं.... आईने को भी.....

मेरे अक्स की तलाश है........

Bahut saadgii se likhe gayay ehsaas ki kavita hai.
abhinandan....

p k kush 'tanha'
http://pramodkumarkush.blogspot.com

अमिताभ मीत said...

Makes sense. In fact just about all you write (on this blog i.e.) makes a lot of sense to me.

ghughutibasuti said...

बहुत सुन्दर । बहुत समय बाद यहाँ नजर आईं । एक बार फिर अपना लिखा हमें पढ़ाने के लिए धन्यवाद ।
घुघूती बासूती

ghughutibasuti said...
This comment has been removed by the author.
ghughutibasuti said...
This comment has been removed by the author.
Chandra S. Bhatnagar said...

रचना बहुत अच्छी है। बहुत समय बाद कुछ पढ़ने को मिला आप की ओर से। अगर और लिखेंगी तो स्वयं से संपर्क पुन: स्थापित करना आसान रहेगा। जीवन में एकाकीपन और भटकन इसिलिये आवश्यक है क्योंकि व्यक्ति यह जान सके कि अब घर लौटने का समय हो गया है।

Divine India said...

how r u ???
काफी वक्त हो गया जब मैने तुम्हारी कोई रचना पढ़ी… बहुत दिनों बाद शूटिंग से लौटा ब्लाग पर आया तो देखा मेरे कुछ पुराने मित्र आज भी टिके हैं…
एकदम मस्त रचना है… :)
क्या कहूं एक ऐसा सच जो दिखती भी है और नहीं भी… शब्दों के किले से बांधने का प्रयास किया…।

Udan Tashtari said...

हो कहाँ आखिर??? बिल्कुल गुम??

Reetesh Gupta said...

बहुत दिनों बाद आपकी कविता देखकर अच्छा लगा ...अच्छा लिखा है ..बधाई....मन बरबस ही अपने पुराने साथियों की तलाश करता है

Anonymous said...

वाह! मान्या जी..रचना बिल्कुल दिल को छूती है..वैसे आपको पहली बार पढ़ा है...मैं भी थोड़ा बहुत लिखता पढ़ता हूं..लेकिन आप की कविताएं...सबसे अलग हैं..

M VERMA said...

मुझे ही नहीं.... आईने को भी.....

मेरे अक्स की तलाश है........
बहुत खूब