ख्वाब आंखों में लिये...
रतजगे करता है कोई...
पूछती हूं...
बंजर हुई नींदों की वजह...
कहता है..
बस यूं ही.........
कभी बे-साख्ता शेर..
कहे जाता है..
कभी ग़जलें लिखता है...
पूछती हूं..
हवाओं पे सज़दे की वजह..
तो.. बस यूं ही...
मेरा दीदार किया करता है...
कभी ख्वाबों में...
कभी तस्वीरों में...
पूछती हूं..
खोयी-खोयी खामोशी..
का सबब...
फ़िर वही.. बस यूं ही...
8 comments:
ufffffffff!!!!!!!!bas yun hi..
बहुत अच्छा मान्या जी। लाभ-हानि के गुणा-भाग से दो वक्त निकालकर आपकी यह चिट्ठाकारी सराहनीय है। लिखते रहिए और भावनाओं को व्यक्त करते रहिए।
मान्या,
मन यही चाहता है
कवितायें निकलती रहें आपके ह्रदय से
बस यूं ही.........
सुन्दर रचना है.
Aksar aapki kavitao ko baar baar padhta.......
ye ek sukoon deta...... bas yu hin.......
बेहतर रचना है…।
एक तन्हाई है पता नहीं क्यूँ वह भी अच्छा लगता है…थोड़ी बेवफाई है पर नहीं पता क्यूँ वही सकून भी है…।
सही लिखा है… थोड़ा और बड़ा होना चाहिए था तो भाव और गहरे उतरते…।
Kabhi lagta hai manyaji ye pura jivan he virodhabhaso per tika hai..
Jo hai wo nahi hai jo nahi hai wo hai..
Sirf chand aisi bate hoti hain jo hain to bus hain...
Unke hone me koi khalipan nahi hota...
Rachna acchi hai
usse v acchi bat hai apka samay nikalna
kyuki ajkal to waqt bari teji se fisalta hai..
- ranjan
अजनबी मित्र.. बस यूं ही..
ध्न्य्वाद मान्धाता सिंह जी.. आप लोग हौसला बढाते रहिये मैं लिखती रहूंगी..
रीतेश जी.. शुक्रिया आपकी शुभकामनाओं का..
समीर जी.. धन्यवाद...
संजीव जी.. आते रहियेगा.. यूं ही...
दिव्याभ मित्र .. बहुत दिनों बाद लिखा था.. अच्छा लगा तुम्हें पसंद आया..
रंजन जी,, आपका भी बहुत शुक्रिया.. जो इतना वक्त्त निकाला..
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