बढता जाता है तन्हाई का एह्सास..
नहीं कोई हमराह मेरे साथ...
बस एक तेरी दिल को आस..
सांवरे!.. कहां हो तुम...
छुटता जाता है..रिश्तों का साथ..
नहीं बढाता कोई..अपना हाथ...
बस एक तेरी नज़रों को प्यास..
सांवरे!... कहां हो तुम.....
दिखाई देती है .. हर खुशी भी उदास..
रूकी-रूकी सी आती है हर सांस..
बस एक तेरी धड़कनों को तलाश..
मेरे श्याम-सांवरे!.. कहां हो तुम..
24 comments:
मान्या जी रचना बहुत सुन्दर भावो से ओत-प्रोत है ।बधाई।
बहुत सुन्दर रचना, बधाई.
बहुत ही सुंदर एहसास है ...
तलाश करती है उन्ही को मेरी नज़र
जो हैं नज़रो से दूर पर दिल के बहुत क़रीब हैं .....
वाह! यह कविता वाक़ई मन को छू गई। ख़ासकर "सांवरे! कहाँ हो तुम" पंक्ति ब्रज भाषा की मिठास लिए हुए है।
Saanware ke prem se bhari kawitaa bahut achchi lagi.
मान्या जी आपकी कविता बहुत अच्छी लगी,..बस ताज्जुब हुआ थोड़ा सा मेरी कविता भी जो मैने कुछ समय पहले(४ मई) ही लिखी थी श्याम सखा जो काफ़ी चर्चा में थी आपने शायद ना पढी हो...कुछ ऐसे ही थी की कहाँ गये तुम श्याम सखा और आपने लिखा सांवरे कहाँ हो तुम,..चलिए एक काम करते है हम दोनो साथ साथ ढूँढते है कहीं तो मिल ही जाएगा,...:)
बहुत बहुत बधाई...
सुनीता चोटिया(शानू)
ये क्या है, मान्या? इस तरह से कब तक चलेगा! हमेशा वही सांवरे की चिंता और सांवरे साहब हैं कि फुर्र-फुर्र होते रहते हैं? कुछ तो इस झमेले का रास्ता निकालना होगा, भई! किया क्या जाए, चलकर पुलिस में रपट लिखवाई जाए? कि जनाब सांवरे इस तरह नित्य का सताना बंद करें! जल्दी तय करो, इस तरह तुम्हारे आंसू देख-देखकर तो दिमाग में एक लंबी कहानी उमड़ने लगी है!
सदा की तरह एक और सुन्दर कविता !
बधाई ।
घुघूती बासूती
बहुत अच्छा!
बहुत अच्छा!
शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा
जाने वालो के लिये दिल नही थोड़ा करते।
हाथ छूटे भी तो रिश्ते नही छोड़ा करते
वक्त की शाख से लम्हे नही तोड़ा करते।
जिसकी आवाज मे सिल्वट हो, निगाहो मे शिकन
ऐसी तस्वीर के टुकड़े नही जोड़ा करते।
लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो
ऐसी दरिया का कभी रूख नही मोड़ा करते।
(गुलज़ार)
शायद अब समझ जाओगी. अगली दफ़ा ख़ुशनुमा रंग दिखे तो समझूंगा कि समझ गए हो.
hamare chitthe par aapke comment ke liye shukriya. aapki rachanye bhi behad sundar aur sarl hai. sanware kahan ho tum...ab toh unhe aana hi padega.
वाह मान्या जी अच्छी रचना है
ढुन्ढ्ते रहीये.. :)
इतनी प्यार से आवाज देंगी तो जल्द ही मिल जायेगा वो सांवरा best of luck !:)
मान्या ! तुम्हारी कविता में लय है, एक बहाव है! रचना खूबसुरत है एवं दिल के भावों को व्यक्त करने में सक्षम है! कुछ और कविताएं भी मैने देखी हैं, लेकिन उनमें यह बात नही दिखी..बधाई। इसी तरह लिखती रहिए। मेरी शुभकामनाएं..
कवि कुलवंत सिंह
परमजीत जी, समीर जी बेहद शुक्रिया..
रंजू जी खूब कहा आपने भी...शुक्रिया..
प्रतीक शुक्रिया आपकी मीठी बातों का..
ध्नय्वाद राहुल.. फ़िर आना दोस्त..
सुनीता जी बेहद शुक्रिया आपकी टिप्प्णी का...
आप सही कहती हैं.. मैने आपकी पोस्ट नहीं पढी थी.. अब पढ ली है बेहद अच्छा लिखा है आपने..मैंने पहले भी लिखा है सांवरे पर.. तीन कवितायें पहले भी लिख चुकी हूं .. कभी वक्त मिले तो देखियेगा.. चलिये मिल कर ढूंढते हैं..कान्हा को मिल ही जायेंगे..
प्रमोद जी पहले तो ध्न्य्वाद यहां आने का.. अरे सांवरे की रिपोर्ट मत लिखवाइये.. दर गये होंगे ये पढ्कर... अब उनके पास इतनी फ़ुर्सत कहां की वो हर वक्त आ सकें.. इसीलिये रहने दिजीये.. अब तो कई लोग तैयार हैं उन्हें मेरे साथ ढूंढने शय्द मिल जायें.. आप कहानी लिख दिजीये हो सकताहै उसे पढ्कर आ जायें.. :)
बासूती जी, अनूप जी,.. बहुत धन्य्वाद..
नीरज जी क्या कहूं आपने गुल्जार साहब के ये श्ब्द कह के बहुत कुछ कह दिया.. बस इतना की " ऐसा नहीं की खुशी ने मेरा दामन छुआ नहीं है.. जहां है ये दर्द खुशी भी वहीं है.. "
पहले भि एक आध बार कोशिश की थी खुशनुमा रंग बिखेरने की.. फ़िर करूंगी कोशिश..शुक्रिया..
सोमेश जी, रंजन जी शुक्रिया सराहना करने के लिये...
मनीष जी.. thanx a lottt. it was required..
कुलवंत जी.. धन्य्वाद जो आप्ने इतना वक्त दिया और मेरी रचनाओं को पढा.. आपका कहा ध्यान रखूंगी..
मान्या,
कविता अपने पुन्य पुकार की अमित श्रृंगार से परिपूर्ण है…कहीं अहट्ठास से कही मन के कोलाहल से…भावना का ख्याल तुमने बखुबी से रखा है…और
Self Less Devotion तो परम तत्व की ओर ही ले जाता है…।
bahut shukriya mitr.. in pyaare shabdon ka. bahut kah diya. itan to maine likha bhi nahi shayd...
A very well written poem, though somewhat despondent.
Here is my reply to what you have asked in your poem.
http://shekhar.mypodcast.com/2007/04/For_Youwith_Love-9803.html
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