Monday, May 7, 2007

बहाव जिंदगी का......




कितने अजीब मोड़ों से गुजरी है जिंदगी...


जाने कौन है हमराह मेरा..


जाने कौन मेरा साथी...


जब भी जो भी मिला....


कुछ अपना सा ही लगा....


दिल के करीब कोई सपना सा लगा...


हर बार मुझे कोई.....


एक नया नाम देता गया..


एक नये बंधन में.....


मेरा वजूद डुबोता गया...


राह में खड़े उस पेड़ की तरह....


कुछ देर यहां ठहरना सभी का....


मेरी परछाईयों में....


सबको सुकून ही मिला....


ढलते दिन के साथ...


जो ढला मेरा साया...


मुझे छोड़ कर....


वो आगे बढता गया.....


और बढते अंधेरे में....


एक नयी आग जला गया....


जली आग ने राह को...


और भी रोशन कर दिया....


खुद को लुटा मेरा मन...


तन्हाई की तपिश सहता रहा....






पर अब चाह्ती हूं बस....


अब ये आग बुझ जाये.....


कोई तो बादल बन....


मुझ पर भी बरस जाये.....


इतनी हो बारिश....


भीग जाये मेरा तन-मन...


एक हो जाये जल-थल...


एक से ही ये धरती-गगन...


मैं भी डूब जाउं....


लेके किसी को संग....


बस अब ये जिंदगी....


किसी मोड़ पर ठहर जाये.....

17 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

सुन्दर रचना है।बधाई।आशा है इसी तरह की भावपूर्ण रचनाएं पढ़्ने को मिलेगी।

Unknown said...

Ati sunder jeevan ka satya hai is kavita me.

Anonymous said...

hi,
how r u?i guess my comment is not been accepted by smbody n indirctly is been said so..anyways hardly a worth to discuss..
saral, sahaj aur sunder!ye bhav lage ki navin aur nutan hain...shabdon ka pravah savabhik aur sashvat hai...good work!

Udan Tashtari said...

बढ़िया भाव है. बधाई इस रचना के लिये.

ghughutibasuti said...

सुन्दर कविता, सुन्दर भाव ! बहुत दिन बाद आपका लिखा पढ़ने को मिला । लिखती रहिये ।
घुघूती बासूती

Manish Kumar said...

बस अब ये जिंदगी....
किसी मोड़ पर ठहर जाये.....

सही...सभी ये प्यार भरा ठहराव चाहते हैं जिंदगी में
अच्छा लिखा है आपने !

Reetesh Gupta said...

पर अब चाह्ती हूं बस....
अब ये आग बुझ जाये.....
कोई तो बादल बन....
मुझ पर भी बरस जाये

मान्या,

पूरी ही कविता कमाल की है ....
अच्छा लगा पढ़कर..

रंजू भाटिया said...

bahut dino baad manya aapka likha padha ....bahut hi usndar bhaav hain is rachna ..



भीग जाये मेरा तन-मन...



एक हो जाये जल-थल...



एक से ही ये धरती-गगन...



मैं भी डूब जाउं....



लेके किसी को संग....



बस अब ये जिंदगी....



किसी मोड़ पर ठहर जाये.....

kash yah sach ho jaaye [:)]

Divine India said...

न जाने कौन है गुमराह…कौन आगाहे मंजिल है
हजारों कारवॉ जिंदगी की शाह राहों में!!

जहाँ तक मैं सोंचता हूँ तुमने यह कविता मात्र लिखने के लिखी है क्योंकि जो प्रवाह होना चाहिए था वो सिमटा सा है…उपर की पंक्तियाँ रुकी है तथा अंत में यह गति को पकड़ने का प्रयास करती है…मुझे थोड़ा अधूरा प्रयास लगा…।

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

मान्या जी, कविता अच्छी लगी
बादल के बरसने को लेकर आपकी बात से सहमत हूं, लेकिन ठहराव..........ना बाबा ना. मेरे हिसाब से ठहरने से जिन्दगी थमती नजर आती है.
गिरीन्द्र

amit kumar singh said...

Pahale aapko aisi sundar rachana ke liye badhayee.....
Abt my painting:
sahi pakada aapne bahut khoob...haan maine usi se inspire ho ke ye painting banayee thee.

सुनीता शानू said...

मान्या जी बहुत सुंदर रचना लिखी है बहुत गहरे भाव है,.. जिन्दगी के उतार-चढा़व सभी बखुबी समा गये है रचना में...
कितने अजीब मोड़ों से गुजरी है जिंदगी...
और फ़िर जीने की दृड़ इच्छा...
पर अब चाह्ती हूं बस....



अब ये आग बुझ जाये.....



कोई तो बादल बन....



मुझ पर भी बरस जाये.....



इतनी हो बारिश....



भीग जाये मेरा तन-मन...



एक हो जाये जल-थल...



एक से ही ये धरती-गगन...



मैं भी डूब जाउं....



लेके किसी को संग....



बस अब ये जिंदगी....



किसी मोड़ पर ठहर जाये.....


बहुत-बहुत बधाई,..
सुनीता(शानू)

Anonymous said...

hi....
it was superb....bole to ekdum rapchik.....bahut dino ke baad aapki kavita padhne ko mili hain....aur likho na,,,,

Monika (Manya) said...

परमजीत जी हौसलाअफ़्जाही का बेहद शुक्रिया...

राहुल तुम्हारा भी शुक्रिया जो इतना वक्त दिया...

hi Aditi thnx for ur greta comeent.. but am not satify with this creation.. n yes sabki pani pasand h so they have diffeent opinions....

समीर जी.. बहुत धन्य्वाद सराहना करने के लिये...

बासुती जी .. आशा है आप युं ही उत्साह बढाती रहेंगी..

Monika (Manya) said...

मनिष जी, रीतेश जी, और रंजू जी.. आप लोगों क बहुत शुक्रिय जो आप्को मेरे कविता ईतनी अच्छी लगी.. आगे भी यूं ही साथ देते रहियेगा...

दिव्याभ सही कहा कविता में अधूरापन है,, कहीं कुछ रह गया य छोड़ दिया . पता नहीं .. पर हां भाव थे जो खिल नहीं पाये,..... धन्य्वाद

गिरीन्द्र जी.. शुक्रिया जो मेरा लिखा फ्संद आया.. और यहां ठहराव जिंदगी में नहीं.. बल्कि एक रिश्ते में चाहिये.. नित बनते बिगड़्ते रिश्तों से ठहराव चाहिये....

आमित जी धन्य्वाद जो आप आये.. और मेरी रचना के सराहा .. उमीद है फ़िर आयेंगे..

Monika (Manya) said...

सुनिता जी आपका बहुत धन्य्वाद जो आप यहां आयी.. आशा है फ़िर आना होगा...

अजनबी मित्र आपका भि शुक्रिया...

Kavi Kulwant said...

कविता में बहाव अच्छा है, जिंदगी में भी दुआ है - अच्छा हो.....
कवि कुलवंत