कभी दरो-दीवार सा
होती हूँ
कभी झरोखे सा
तो कभी खिड़की
कभी बारिश में
भींगा आंगन होती हूं
कभी धूप में तपती
छत भी
कभी चौखट सी
कभी दीवट सी
मैं आंगन का
तुलसी चौरा भी
कभी रसोई सी
कभी बैठक सी
कभी कमरा
तो कभी कोना भी
मैं औरत हूँ
मैं घर होती हूँ