स्याह सा अकेलापन...
डर लगता है मुझे....
इस घिरते अंधेरे से...
सन्नाटे में गूंजती आवाजें.....
सोने नहीं देती मुझे....
अजनबी कदमों की आहटें...
चौंका देती हैं मुझे...
दूर कहीं गुजरता है कुछ....
उठ जाती हूं नींद से मैं...
पसीने - पसीने.. घबराई हुई.....
पूछ्ती हूं परछाईयों से....
क्या जानती हूं तुम्हें....
पैरों को मोड़े.. घुटनों पे सर रखे....
खुद में खुद को समेटे हुये....
जैसे खुद को संभालती हूं मैं....
कुछ भूली - बिसरी बातें....
कुछ धुंधले से चेहरे...
याद आते हैं मुझे....
मन भींग जाता है...
और आंखें भी...
नमकीन पानी से...
भीतर कहीं....
कुछ टूटता जाता है...
और बढ़ जाता है...
खालीपन.....
जाने क्यूं उठने का....
दिल नहीं करता....
ना ही देखने का..
वक्त की आंखों में....
यूं ही चुपचाप खामोश गुजर..
जाये ये जिंदगी...
अब लड़ने का दम नहीं मुझमें...
डर लगता है मुझे....
इस घिरते अंधेरे से...
सन्नाटे में गूंजती आवाजें.....
सोने नहीं देती मुझे....
अजनबी कदमों की आहटें...
चौंका देती हैं मुझे...
दूर कहीं गुजरता है कुछ....
उठ जाती हूं नींद से मैं...
पसीने - पसीने.. घबराई हुई.....
पूछ्ती हूं परछाईयों से....
क्या जानती हूं तुम्हें....
पैरों को मोड़े.. घुटनों पे सर रखे....
खुद में खुद को समेटे हुये....
जैसे खुद को संभालती हूं मैं....
कुछ भूली - बिसरी बातें....
कुछ धुंधले से चेहरे...
याद आते हैं मुझे....
मन भींग जाता है...
और आंखें भी...
नमकीन पानी से...
भीतर कहीं....
कुछ टूटता जाता है...
और बढ़ जाता है...
खालीपन.....
जाने क्यूं उठने का....
दिल नहीं करता....
ना ही देखने का..
वक्त की आंखों में....
यूं ही चुपचाप खामोश गुजर..
जाये ये जिंदगी...
अब लड़ने का दम नहीं मुझमें...