Friday, February 9, 2007

मुझे अफ़सोस नहीं......


मुझे अफ़सोस नहीं इसका..

की मैं राह हूं केवल...

किसी की मंज़िल नहीं...

गम है तो बस इतना की...

भूल जाते हैं राहें लोग...

मुझे अफ़सोस नहीं इसका..

की मैं साथी हूं केवल..

किसी की ज़िंदगी में शामिल नहीं..

गम है तो बस इतना..

साथ छोङ देते हैं लोग..

मुझे अफ़सोस नहीं इसका...

की मैं गुजरा पल हूं केवल..

जिसे तमाम उम्र हासिल नहीं..

गम है तो बस इतना..

गुजरा वक्त भूला देते हैं लोग...





"किसी और से नहीं पर खुद से गिला है मुझको,
शायद खुद मेरी वजह से मेरी ज़िन्दगी छोङ गई मुझको।"

10 comments:

Divine India said...

यह दुनियाँ भी अजीब है…आप जबतक अंधेरे में होते है लोग देखकर भी अनदेखा कर चलते है पर जैसे ही आपका उदय होता है…सभी आपके तलबे में होते है…
बहुत अच्छा लिखा है…इस बार ज्याद नहीं इतना ही कहूँ "सच को कह दिया तुमने कुछ तारों को जोड़कर
यही तो दुनियाँ है जो दिखाया है तुमने…।"

Reetesh Gupta said...

बढ़िया है मान्या ...ऎसे ही लिखते रहें

बधाई !!

राकेश खंडेलवाल said...

मान्या

तुम्हारी रचना और साथ का चित्र दोनोंही बेहतर हैं. सच

यह ज़िन्दगी
एक नदी के दो किनारोंको
जोड़ते पुल्सी है
और हम
केवल इस पर से गुजर जाने भर को हैं.

ePandit said...

सुन्दर कविता, अफसोस न करें मंजिल पाने के लिए राह का ही तो सहारा लेते हैं लोग।

रंजू भाटिया said...

"किसी और से नहीं पर खुद से गिला है मुझको,
शायद खुद मेरी वजह से मेरी ज़िन्दगी छोङ गई मुझको।"

zindagi kal kis pal apana asar dikha jaaye
chalo aaj apne dil ki baat kuch yun lafzo mein keh di jaaye !!

bahut khoob manya ...dil ko chhoo gayi yah lines ....

Upasthit said...

जमी हुयी परिभाषायें, पिघलना चाहतीं, यूं गम मे ना डूबतीं तो कविता मुझे आपकी और भी कई कविताओं की तरह, और भी पसन्द आती । कभी कभी खुद भी निराशा मे लिखता हूं ।
पह्चान का संकट, उगते सूरज को सलाम करने की आदत और समय के साथ बदलते रहना, जमाने की फ़ितरत है और आपकी कविता इन प्रतीकों(राह, गुजरे पल और साथी) को गम में न दिखा, इस फ़ितरत को सामने और खुल कर लाती इन प्रतीकों को पुर्ण विश्वाश से समने खड़ा करती तो बेशक और पसन्द आती ।
आपकी कविता पढ एक शेर याद आया, पता नहीं क्यों...
जिन्दगी एक अदा एक हुनर एक कमाल
जिनको जीना नहीं आता वो मर जाते हैं...
....आदिल लख्ननवी

Monika (Manya) said...

divya, Rakesh JI,Ritesh JI, Shrish Ji, Ranju .. aap sabka dhanywad ki aap sabne meri rachna ko padha pasand kia aur us par apne wichaar diye..

Upasthit Ji.. ek baar phir aapka dhanywad ki aap ne apne sujhaaw diye.. par har kavita ka apna bhaaw hota hai.. kabhi aasha kabhi nirasha.. yahan mujhe afsos khud par nahi par logon ki soch par hai.. aur uspar niraasha hi haath lagi aur satya bhi yahi hai.. nahi? aur shayd apne meri iske pahle wali post nahi padhi use dekhiye wahan aapko nirasha ki dhund me aas ki kiran nazr aayegi.. waise aapko samjhna thoda mushkil hai jab aasha aur wishwaas jagaati hun to aap use pacha nahi paate aur jab niraash hoti hun to wo bhi gawaara nahi..

Prabhakar Pandey said...

सुन्दर । अति सुन्दर रचना ।

ikShayar said...

समय का क्‍या भरोसा, जाने कब ले ये करवट

जीवट तू चलता जा, रंग लायेगी तेरी मेहनत


I hope these two lines are encouraging enough :) .

you can read me at : http://ikshayar.wordpress.com

ANTASH KISHORE SINHA said...

gazab ki adbhut rachna hain ye....dil ko chu jaane wali...