कितने अच्छे थे वो कुछ दिन, जब प्यारा-प्यारा बचपन था,
और था निश्छल-निर्मल मन....
जब मुस्काते थे हर पल-छिन,
कितने अच्छे थे वो कुछ दिन.....
जब झूला था बांहों का, और गोद का था बिस्तर,
जब सुला देती थी लोरी की धुन...
कितने अच्छे थे वो कुछ दिन....
जब सुना करते थे कहानीयां, और सपनों में थी परियां,
जब नया खेल था हर नये दिन...
कितने अच्छे थे वो कुछ दिन....
अब ढूंढता है दिल, वो खेल-खिलौने वो साथी,
वो पल में रोना, पल में हंसना...
वो नन्हा-मुन्ना बचपन,
वो सोने चांदी की रातें, वो हीरे मोती से दिन...
सच कितने अच्छे थे वो कुछ दिन..........
6 comments:
सच! कितना अच्छा था वो बाल सुलभ नटखटता वो चंचलता बे-फिकरी का आभास भी न होना न मिट्टी न सोना न धीरता न अधीरता,मात्र जीना और जीना…खुबसुरत।
बचपन की बातें कभी भी भुलाए नही भूलती। वो बेफिक्री, वो चंचलता। अब कहाँ।
हमने भी लिखे है बचपन के कुछ किस्से :
बचपन के मीत जरूर देखिएगा।
जब भी बचपन की बातें पढ़ते हैं वो सारी बातें और शरारतें आँखों के सामने आ जाती है, वो कागज़ की कश्तियाँ और बारिश का पानी याद आता है।
कई बार यह लगता है जितना आनन्द बचपन का हमें मिला है हमारे बच्चों को नहीं मिलता
बहुत सुन्दर कविता... पढ़कर बचपन के दिन आँखों के सामने नाचने लगे हैं।
mind blowing...........apke hatho mein kya koi jaadu hain kya.........padh ke dil garden garden ho gaya.............yuhi aap likhte rehna aur hum padhte rahenge
nidhi
thnx divya for ur comments........
Dhnyavad jitu ji jaroor dekhungi..
Bahut dhnyawad sagar ji aapka.. achha laga aapke udgaar padh kar.. sahi h zamana badal gaya h phle wala anand ab kahan..
Apko kavita pasand aayi iske liye dhnyawad pratik...
Thnk u nidhi...
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