Friday, June 24, 2016

My Doppelganger

I saw my
doppelganger
Wearing a white
chiffon sari
A hint of
pink gloss
on her lips
Her long nails
polished in pink
She was humming
and walking barefoot
on the sea beach

I watched her in silence
holding my breathe
She sat on a rock
Her feet dipped
in the water
Her Gothic eyes
sipping on the sunset
Wind tangling with
her open hair
She sitting with
open palms
crossed over each other
As if trying to
absorb the moisture
of air in her bare hands
She sat there motionless
but glittered with life

Soon it was dark
and I had to return home
I left her alone
unconfined in her solitude
Her aroma still
mingled in my breathe
Her image still
muddling my heart

Wednesday, February 17, 2016

Main Ghar Hoti Hun

कभी दरो-दीवार सा
होती हूँ
कभी झरोखे सा
तो कभी खिड़की 
कभी बारिश में
भींगा आंगन होती हूं
कभी धूप में तपती
छत भी
कभी चौखट सी
कभी दीवट सी
मैं आंगन का
तुलसी चौरा भी
कभी रसोई सी
कभी बैठक सी
कभी कमरा
तो कभी कोना भी
मैं औरत हूँ
मैं घर होती हूँ

Tuesday, November 4, 2014

तुम्हारा अह्सास .... और मेरी तन्हाई.....





हर रोज़ शाम ढलते-ढलते....

जैसे जैसे रात घिरने लगती है....

वैसे बढता जाता है...

मेरी तन्हाई का एह्सास...


तुम चली आती हो....

अचानक जाने कब मेरे पास...

कभी जुल्फ़ें बिखेरे, कभी आंचल फ़ैलाये...

कभी मुस्कुराती.. कभी शरमाती..

मेरे पास आकर मुझमें...

सिमट जाती हो तुम...


फ़िर धीरे-धीरे कली सी..

खिलने लगती हो तुम..

ज्यों-ज्यों रात गहराने लगती है...

और चांद चढता जाता है गगन में..

तुम बिखर जाती हो चांदनी सी...


और मैं विस्तृत आकाश सा....

तुम्हें भर लेता हूं अपने आगोश में...

तुम्हारी महकती खुश्बू... गर्म सांसें..

तुम्हारे बदन का वो रेशम....

मेरे सीने में जलती वो ठंडी आग..

तुम पिघलती जाती हो मेरी बांहों में...

और मैं भी समा जाता हूं...

तुम्हारी रूह में....


ना मैं ना तुम.. कोई नहीं...

बस दो जिस्मों की एक परछांई....

दो दिलों की एक धड़कन.......


फ़िर तुम और भी चमक उठती हो...

चांदनी सम...

तुम चंचल निर्मल नदी सी होती हो..

मैं सागर सा विस्तृत हो जाता हूं.....


तुम शांत तृप्त मुझमें खोकर....

मैं परिपूर्ण तृप्त तुम्हें पाकर...

मैं देखता रहता हूं तुम्हें सोते हुये...

तुम्हारी बंद पलकें...

चेहरे की वो मासूमियत.....

छूता हूं तुम्हारे गालों को...

अपनी दो ऊंगलियों से...


और तुम मुस्कुरा देती हो....

तुम्हें लिये मैं भीं सो जाता हूं...

दोनों उस परम अनुभूति मे खोये हुये..


फ़िर रात ढलने लगती है...

और ढल जाती है चांदनी भी....

सुबह की गरमी में...

मैं आंखें खोलता हूं....

अपने हाथ बढाकर तुम्हें टटोलता हूं....

पर तुम कहीं होती नहीं....

पाता हूं वही एक खाली- सूना कमरा...


एक बिस्तर.. उस पर रखे दो तकिये...

एक बिना सिलवटों वाली कसी चादर....

सुबह की पूर्वाई में ....

घुली मेरी अपनी महक...

और मेरी आंखों की कोरों पर....

रखे तुम्हारे गीले ख्वाब...


मैं एक बार फ़िर तन्हा हो जाता हूं..

तुम्हें फ़िर से पाने को मैं...

फिर वहीं सो जाता हूं....








Tuesday, March 12, 2013

Main khud ko shakal deti hun


   : सौजन्य : गूगल 


 मेरी ज़िन्दगी के टुकड़े ...
 ये चंद धुंधले से चहरे .....
मेरी अधूरी कहानी के पन्ने .....
ये अधूरे से कुछ रिश्ते ....
बिखर  गए थे यादों के दामन से ..
अधूरे से ये किस्से ...
मेरे वजूद से हिस्से ....
मैं इनको समेटती हुं ....
मैं खुद को एक शक्ल देती हुं 

Monday, February 11, 2013

Dard mien doobe chand lafz....


चित्र सौजन्य - गूगल 

कुछ बूंदे  मेरे लहू की ......
कतरा कतरा कुछ अश्क ......
चंद लकीरें हाथों की .......
एक फ़साना बिखरा सा .......
एक ग़ज़ल तिनको सी ......
यादों की बंद खिड़कियाँ .......
एक दीवार दरारों की ......
ना टुकड़े  समेटे .......
ना दरारें भरी .....
जिंदगी उलझी गिरहों सी .......


Wednesday, December 19, 2012

Tumhaari talsaash ... tumhaare saath ....




चित्र सौजन्य -  गूगल 

तुम्हारी तलाश .... तुम्हारे साथ ......
मन के नगर  .... मिले तुम नहीं ...
जाने कहाँ .... बसे किस देश ..... 
मेरा दिल ..... जैसे बना परदेश ..... 
ढूँढने तेरे मन का आँगन ....... 
फिर - फिर आऊँ .... तेरे घर के बार ...
तुम्हारी तलाश ... तुम्हारे साथ ....
मेरी आँखों से .... गुजरे हैं जो कभी .... 
यादों के साए ... या तुम्हारे ख्वाब ....
तुम्हीं से सारे सवाल ...... 
तुम्हीं से सारे जवाब ......
तुम्हारी तलाश ..... तुम्हारे साथ .....
सांस - सांस .... बन आना तुम्हारा ....
धड़कन बन ... धड़कना दिल में ....
फिर भी तुम मेरे नहीं  .....
बन के रहे मेरे संग .... बस ख्याल ......
तुम्हारी तलाश .... तुम्हारे साथ ....... 

Wednesday, February 16, 2011

स्याह सा अकेलापन


स्याह सा अकेलापन...
डर लगता है मुझे....
इस घिरते अंधेरे से...
सन्नाटे में गूंजती आवाजें.....
सोने नहीं देती मुझे....
अजनबी कदमों की आहटें...
चौंका देती हैं मुझे...
दूर कहीं गुजरता है कुछ....
उठ जाती हूं नींद से मैं...
पसीने - पसीने.. घबराई हुई.....
पूछ्ती हूं परछाईयों से....
क्या जानती हूं तुम्हें....
पैरों को मोड़े.. घुटनों पे सर रखे....
खुद में खुद को समेटे हुये....
जैसे खुद को संभालती हूं मैं....
कुछ भूली - बिसरी बातें....
कुछ धुंधले से चेहरे...
याद आते हैं मुझे....
मन भींग जाता है...
और आंखें भी...
नमकीन पानी से...
भीतर कहीं....
कुछ टूटता जाता है...
और बढ़ जाता है...
खालीपन.....
जाने क्यूं उठने का....
दिल नहीं करता....
ना ही देखने का..
वक्त की आंखों में....
यूं ही चुपचाप खामोश गुजर..
जाये ये जिंदगी...
अब लड़ने का दम नहीं मुझमें...