tag:blogger.com,1999:blog-4019492535176911850.post613408580758538130..comments2023-10-30T21:25:07.292+05:30Comments on RHYTHM OF LIFE...listen it from heart.: एक प्रश्न उस रचयिता से....Monika (Manya)http://www.blogger.com/profile/02268500799521003069noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-4019492535176911850.post-58610276755045414452007-02-04T17:24:00.000+05:302007-02-04T17:24:00.000+05:30दो बार तो पढ चुका हूँ, समझ मे नही आयी कविता।
रात ...दो बार तो पढ चुका हूँ, समझ मे नही आयी कविता।<br /><br />रात को डिक्शनरी लेकर बैठूंगा, तब शायद समझ मे आयेगी।<br /><br />जगह मिलने पर पास दिया जाएगा। ( समझ मे आने पर टिप्पणी अवश्य की जाएगी)Jitendra Chaudharyhttps://www.blogger.com/profile/09573786385391773022noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4019492535176911850.post-81546681423555399472007-02-03T19:52:00.000+05:302007-02-03T19:52:00.000+05:30मैं इसपर कोई विवाद नहीं चाहता…पर तुम्हारा आक्षेप ग...मैं इसपर कोई विवाद नहीं चाहता…पर तुम्हारा आक्षेप गलत है कि मैने नहीं समझा…अगर अभी-भी तुम्हें कण-कण में परमात्मा दिखते हैं तो इसका साफ मतलब है कि अभी-भी कण और परमात्मा एक नहीं दो हैं…मैं जिसकी बात कर रहा हूँ वह व्यवहारिक सत्ता है…पारमार्थीक सत्ता की बात मैं नहीं कर रहा…पारमार्थीक सत्ता में मैं और ईश्वर दो नहीं एक भी नहीं अवर्णीय है…इसकारण उसकी <br />बात तो हो ही नहीं सकती…व्यवहारिक रुप में तुम सही हो…कुछ दिनों में सगुण ब्रह्म और निर्गुण ब्रह्म पर लिखुंगा…।कहीं इसका उत्तर मिल जाए!!वैसे भी ये इतना आसान नहीं है जो दिखता है…कितने दर्शन की पुस्तकें इसको अबतक समझ नहीं पाईं…जब कभी सामना होगा तब पुछ लेना…तब वाद करेगें यहाँ मात्र वितडा के कुछ नहीं मिलेगा…Divine Indiahttps://www.blogger.com/profile/14469712797997282405noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4019492535176911850.post-5298820998924231272007-02-03T16:36:00.000+05:302007-02-03T16:36:00.000+05:30धन्यवाद.. पर इस बार तुम नहीं समझे दिव्य.. मैने दोन...धन्यवाद.. पर इस बार तुम नहीं समझे दिव्य.. मैने दोनो पहलुओं को समान रुप से लिया है और स्वीकारा है.. और परमात्मा को तो मैनें कण-कण में स्वीकारा है..और अपने उत्तर को तुमने खुद हि काटा है.. एक तरफ़ तो सुख - दुख को साथ देखने कि बात कह्ते हो तो दूसरी तरफ़ एक अकेलॆ मानव के साथ जगत को सुंदर मानते हो.. एक तरफ़ धर्म और तृष्णा का स्मन्वय किया दूसरी तरफ़ विलासिता को दोष दिया.. यहां उस असीम शक्ति से प्रश्न कर मैने मानवों को दोनो पहलू देखने कहा है।Monika (Manya)https://www.blogger.com/profile/02268500799521003069noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4019492535176911850.post-9308381928736151612007-02-03T16:21:00.000+05:302007-02-03T16:21:00.000+05:30तुम्हारे सारे प्रश्नों का एकमात्र उत्तर है यह कि ह...तुम्हारे सारे प्रश्नों का एकमात्र उत्तर है यह कि हम आज भी परमात्मा को स्वयं से अलग कर के देखते है…यह क्यों नहीं सोंचती की अगर धर्म के सामने तृष्णा न हो तो जीने का मजा आएगा…हमेशा मिलन ही जीवन का एक पहलु नही हो सकता जब जुदाई न हो तो अहसास क्या बन पाएगा…वो हमसे ज्यादा समझदार है…प्रश्न हमें पुछना चाहिए खुद से कि जब प्रथम मानव का जन्म हुआ होगा कितना सुंदर लगता हो जगत अपना…जाकर ताज महल देखो… मैं सोचता हूँ कि जब यह बनकर तैयार हुआ होगा तब कितना अद्भुत लगता होगा लेकिन मानव की विलासितापूर्ण जरुरतों ने इसे भी समाप्त कर दिया…एकबार इस द्वैत आवरण को जला कर के तो देखो…उसका प्रेम रस बहुत महीन है…छोड़े नहीं छूट्ता…<br />Wellcome back!!!Divine Indiahttps://www.blogger.com/profile/14469712797997282405noreply@blogger.com